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ठीक है भैया ये तो मेरे से बिल्कुल अलग पड़े है परन्तुयह शीर...
ठीक है, शरीर तुमसे मिलाजुला,एकमेकसा जरूर है। परन्तु यह भी तुमसे भिन्न ही है क्योंकि मरने पर आत्मा (मैं) चलीजाती है और शरीर यहीं पड़ा रह जाता
है।
और ...
यही नहीं, तुम्हारे साथ लगे ये कर्म भी
तुमसे भिन्न है, और यही नहीं तुम्हारे अन्दर उत्पन्न होने वाले राग, द्वेष आदि विकारी भाव भी तुमसे भिन्न है क्योंकि किन्हीं महापुरुषोंने इनको भी अलग करके दिखा दिया है।
तो फिर मैं क्या
बस इन सबको अपने से अलग करते जाओ,जो आरिवर में बचे वह " में