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________________ सेठ-सेठानी दोनों बड़े प्रसन्न-सोच रहे हैं,लड़का नहीं हुआथा हमबड़े दुखी थे। लड़का हो गया हम सुखी हो गये। में सुखी करने वाला लड़का ही तो अब मैं निहाल हो गई-देवो न कुछ ही वर्षों में हमारा पुत्र बड़ा हो जायेगा, छोटीसी बटुआसी बहू घर में लायेगा, मैं तो उस पर वार-वार कर पानी पिऊँगी। फिर पोता होगा उसकी बालक्रीड़ाओं से हमारा आंगन रिवलखिला उठेगाजन वह मुझे 'अम्मा' कह कर पुकारेगा तोनस क्या कहूँ ? और मेरी भी मत । पूछो-आज मैं सिर उठाकर चल सकता हूँ क्योंकि मेरेपुत्र जो हो गया है-वह मेरे नाम को एसा चमकायेगा किबस नगर में मेरा ही मेरा नाम होगा 3 परन्तु कुछ ही वर्ष बीते थे कि सेठ-सेठानीका भाग्य ऊठ गया। लड़का पंद्रह वर्ष काही हुआ था कि ऐसा बीमार हुआ कि बचने की कोई आशा ही नहीं। एक दिन... हाय ! मैं लुट गई, बरबाद हो गई, क्या-क्या सपने संजोये थे मैने। क्या सब ख़ाक में मिलजायेंगे। नहीं-नहीं कुछ तो करोजी,किसी तरह रोक लो मेरेप्यारे से सलोने से बच्चे को । मत जाने दो, बचा लो इसे।. प्रिये, अब क्या होगा? डाक्टर ने जवाब दे दिया है। बच्चे के बचने की कोई आशा नहीं ON IRDH (रूका 16
SR No.033225
Book TitleGaye Ja Geet Apan Ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size8 MB
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