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कहाँ-कहाँ गये हो भाई, जरा मैं भी तो सुनूं
सुनना ही चाहते है तो सुनिये। दुनिया में सबसे हितकारी होती है माँ माँ, जिसने नौ महीने मुझे पेट में रखा, खुद गीले में सोई पर मुझे सूखे में सुलाया, रात-रात जागी, एक दिन मेरे सर में दर्द हुआ, सारी रात बैठी दबाती रही मेरे सिर को, परन्तु सुखी न कर सकी।
फिर कहाँ गया ?
गया पत्नी के पास । तन, मन, धन, सभी कुछ तो न्यौछावर करने को तैयार हो गई परन्तु मैं सुरखी न हो सका।
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फिर कहाँ खोजा सुख को ?
फिर सोचा शायद पुत्रों के पास सुख मिलेगा, मित्र सुरवी कर देंगे, पहुंच गया उनके पॉस, पर मेरी झोली खाली की खाली ही रही, कोई न देसका सुख किंचित भी
इसके
बाद क्या
किया तुमने ?