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________________ मेरे अन्दर सुरव भरा पड़ा है, कैसे भैया? जब ऐसा है तो मैं दुरवी क्यों हूँ भाई? सुरव का ही नहीं, तू तो अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन व अनन्त शक्ति का भी भंडार है। तू तो सिद्ध भगवान के समान है,जहां कोई आकुलता नहीं और आकुलता के अभाव में बससुरवही सुरव, तूने सदैवपर-पदार्थो की ओर ही देरवा, उनमें ही रवाजा अपने सुख को, उनसे ही भीख मांगी सुखकी। उनसे सुख की आशा कर करके अपने ज्ञान को ही गंवा दिया और भिखारी बना दुरवी हो रहा है। तो अब क्या कळं भेया? भिरवारीपन छोड़ दे, अपने अन्तर में झांक, अपने रखजाने को देख बस सुरवीहो जायेगा क्यों नहीं, क्यों नहीं । सुनी नहीं तूने आत्मकीर्तन की ये पंक्तियां:"मम स्वरूप है सिद्ध समान, अमित शक्ति सुवज्ञान निधान। किन्तु आशवशरतोया ज्ञान, बना भिरवारी निपट अजान ।।" क्या सचमुच
SR No.033225
Book TitleGaye Ja Geet Apan Ke
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMoolchand Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages34
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size8 MB
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