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"आत्म कीर्तन" हूँ स्वतन्त्र निश्चल निष्काम, ज्ञाता दृष्टा आलमराम ॥टेक।। मैं वह हूँ जो है भगवान, जो मैं हूँ वह हैं भगवान । अन्तर यही ऊपरी जान, वे विराग यह राग वितान ।। मम स्वरूप है सिद्ध समान , अमित शक्ति सुख ज्ञान निधान। किन्तु आश वश रखोयाज्ञान,बना भिरवारी निपट अजान ।। सुख दुख दाताकोईन आन, मोह,राग,द्वेष दुख की खान । निज कोनिज परको पर जान,फिर दुरव का नहीं लेश निदान।। जिन शिव, ईश्वर,ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम। राग त्याग पहुँचू निजधाम,आकुलता का फिर क्या काम ।। होता स्वयं जगत परिणाम , मैंजग का करता क्या काम । दर हटो परकृत परिणाम, सहजानन्द रहूँ अभिराम ।।
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