Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 23
________________ भैया, तुम्हें क्या चाहिये? मुझे तो कनकचाहिये गुरुजी गुरू जी, मुझे तो बस गेहूँ दे अरे तुम क्यों पीछे रह गये, तुम भी तो बताओ तुम्हें क्या चाहिये? तुम लो यह कनक भैया तुमलो यह गेहूँ सन ने देखा, गुरुजी के हाथ में चीज एक ही थी, वही चीज उन्होंने सबको दीपिरन्तु सबखुश हो गये, झगड़ा मिट गया। यह आपने कैसे खुश कर दिया हम सबको? देवो भैया, मेरे हाथ में चीज तो एक ही थी परन्तु तुम उसको अलग अलग नाम दे रहे थे। तब. परन्तु गुरूजी, इस बात का हमारे उस झगड़े से क्या मतलब कि किसका भगवान बड़ा है। इससे हमारेझगड़े का तो निपटारा नहीं होला?

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