Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 26
________________ नाम था उसका कैलाश-बड़ा परेशान-पहुँचामुनिमहाराज के पास. मैं बड़ा दुखी हूँ महाराज, मेरे व्यापार में बराबर घाटा हो रहा है। साल भर पहले मेरा जवान बेटा मरा है, शरीर में भयंकर घर कर गया रोग, क्याकऊँ क्या न करु,कुछसमझ में नहीं आता। सदा परेशान रहता हूँ। कृपया कुछ उपदेशदीजियेगा ताकि मुझे शांति मिले। भैया, मैं क्या उपदेशदूँ। यहां से कुछदूर जयपुर नगर में एक बहुत बड़ा सेठरहता है,नाम है उसका शांतिलाल तुम उसके पास्चले जाओ,वह तुम्हें शांति का उपदेश देंगे। कैलाश पहँचासेठ शांतिलालकी कपड़े की कोठी में और.. हैं! यह क्या! ये है सेठ जी, इतना ठाठ-बाट, नौकर चाकर मुनीमगुमास्ते, लम्बे चौड़े बही खाते, कई कई टेलीफून-इन्हें तो एक मिनट की भी चैन दिखाई नहीं देती। फिर ये क्या उपदेश देगे मुझे। परन्तु फिर भी मुनिराज की आज्ञा तो माननी ही पड़ेगी। MOOTDIA /10000vil 366000000000 शुभलाभ Re 24

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