Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 25
________________ भाई, फिर क्यों झगड़ते हो व्यर्थ में । ये सब जिसके नाम हैं ऐसे उस आत्म स्वभाव में, पर विषयक रागादि छोड़कर यदि कोई पहुँच जाये, तो फिर उस दशा में आकुलता है ही नहीं । अतः झगड़ा बन्द करो, उस निज धाम को पाने का प्रयत्न करो, तुम स्वयं ही तो भगवान बन जाओगे । फिर सब भक्त गाने लगे. कमाल कर दिया गुरूजी नेआओ सभी मिलकर गायें आत्मकीर्तन की ये पक्तियां... "जिन, शिव, ईश्वर, ब्रह्मा, राम, विष्णु, बुद्ध, हरि जिसके नाम । राग त्याग पहुँच निज धाम, आकुलता का फिर क्या काम ।।" Mus 23

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