Book Title: Gaye Ja Geet Apan Ke
Author(s): Moolchand Jain
Publisher: Acharya Dharmshrut Granthmala

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Page 17
________________ चार सेठ धर्मदासजी व उनकी प्रिये, हमारे विवाह को आठ वर्ष हो गये। घर में पत्नी बैठे हैं। दोनों ही उदास... सब कुछ है, करोड़ों की सम्पत्ति, सब ठाठ-बाट परन्तु ... यही चिन्ता तो मुझे भी रवायेजा रही है। एक पुत्र होजाता हम सुखी हो जाते,बुढ़ापे का भी सहारा हो जाता। दिन बीतने लगे- बजाओ, बजाओ, खून बाजे बजाओ, दो वर्ष बाद पुत्ररत्न | आज मेरा भाग जागा है, मेरे घर पुत्र की प्राप्ति हुई। बस पैदा हुआ है, अरे भाईयों, सुनातुमने खुशियोंसे घर भर आज मेरी मुराद पूरी हुई है,मेरा गया। सेठ-सेठानी बुदापे का सहारा आ गया है अब मुझे फूले न समाये... कोईकमीनहीं घर-घर ऐसीरोशनी करो मानों दीवालीहो। tim अरी रखून नाचो, खूब गाओ, एखूब खुशियां मनाओ, आज निहाल हो गई, मेरी मनचाही हो गई, मैं पूर्ण सुरवी हो गई। NMEAN ITISH PLEA VE 15

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