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अर्थनिरूपण तुम हम-जैसे लोगों का कुलीनता के कारण अनुवर्तन करते हो और फिर मन में चिन्तित हो जाते हो ( मनमें सोचने लगते हो या दुःखी हो जाते हो)। जो कुलीन नहीं है वह सुख को जीत लेता है । ( वश में कर लेता है, क्योंकि उसे कृत्रिम अनुराग से अभिनय का कष्ट नहीं झेलना पड़ता )।
यहाँ 'जअई' ( जयति ) से 'जिभई' (जीवति ) का भी अर्थ लिया जा सकता है । हेमचन्द्र के अनुसार धातुओं में किसी स्वर के स्थान पर दूसरा स्वर भी संभव है।' उस स्थिति में" सुख को जीत लेता है ।" के स्थान पर सुख से जीता है' अर्थ होगा। ७५. मलिणवसणाण किअवणिआण आपंडगंडपालीणं ।
पुप्फवइआण कामो अंगेसु काउहो वसइ ।। मलिनवसनानां कृतवनितानां (?) आपाण्डुगण्डपालीनाम् । पुष्पवतीनां कामोऽङ्गेषु कृतायुधो वसति ॥
"मैले वस्त्रों वाली, अलग रहने वाली (?) पीले गालों वाली पुष्पवतियों (रजस्वलाओं) के अंगों में कामदेव आयुध धारण किये हुये निवास करता है।"
'किअवणिआणं' की संस्कृतच्छाया अशुद्ध है। प्राचीनकाल में पुष्पवती महिलायें अपने अंगों में हरिद्रामिश्रित लेप लगाती थीं। उस लेप को वणिका कहते थे। 'वणिआ' शब्द 'वर्णिका' का प्राकृत रूप है । संस्कृतच्छाया में कृतवनितानां के स्थान पर 'कृत वणिकानाम्' होना चाहिये ।।
उपयुक्त अनुवाद में 'अलग रहने वाली' के स्थान पर 'हरिद्रामिश्रित लेप लगाने वाली' जोड़ देने पर त्रुटि नहीं रह जायेगी। ७६. णिअदइअदसणू सुअ पंथिय! अण्णेण वच्चसुपहेण ।
घरवइधूआ दुल्लंघवाउरा ठाइ हअग्गामे ॥
निजदयितदशनोत्क्षिप्त पथिकान्येन व्रज पथा।
गृहपतिदुहिता दुर्लध्यवागुरेह हतग्रामे ॥ "अपनी प्रिया के दर्शन के लिये उत्सुक हे पथिक ! दूसरे मार्ग से जा, इस दुष्ट गांव में गृहपति की पुत्री रहती है, जिससे बच कर निकलना मुश्किल हो जायगा।"
'सु' की संस्कृतच्छाया 'उत्सुक' होगी, 'उत्क्षिप्त' नहीं । अनुवादक ने वागुरा का अर्थ नहीं दिया है। उसी शब्द में अन्य मार्ग से जाने का हेतु सन्निहित है। कथन का आशय है कि इस दुष्ट गांव में रहने वाली सुन्दरी
१. स्वराणां स्वरा:-प्रा० व्या
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