Book Title: Gathasaptashati
Author(s): Mahakavihal, 
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 218
________________ षष्ठं शतकम् आअण्णाअढिअणिसिअभल्लमम्माहआइ हरिणीए । अदंसणो पिओ होहिइ त्ति वलिउं चिरं दिट्ठो ॥ ९४ ॥ [ आकर्णाकृष्ट निशितभल्लमर्माहतवा हरिया | अदर्शन: प्रियो भविष्यतीति वलित्वा चिरं दृष्टः ॥ ] कानों तक खींचकर चलाये हुए तीर से मर्माहत हरिणी प्यारे हरिण को गर्दन मोड़कर बड़ी देर तक यह सोचकर निहारती रहो, कि इनका दर्शन अब मुझे दुर्लभ हो जायगा ।। ९४ ॥ १४३ विसमट्टिअपिक्केक्कम्बदंसणे तुज्झ सत्तुघरिणीए । को कोण पत्थिओ पहिअअं डिम्भे रुअन्तम्मि ॥ ९५ ॥ [ विषमस्थित पक्वैकाम्रदर्शने तव शत्रुगृहिण्या | कः को न प्रार्थितः पथिकानां डिम्भे रुदति ॥ ] दुर्गम डाली पर लटकता हुआ पका आम देखकर जब बालक रोने लगता है, तब तुम्हारे शत्रु को पत्नी किस-किस पथिक से प्रार्थना नहीं करती ।। ९५ ।। मालारी ललिउल्लुलिअबाहुमूलेहिँ तरुणहिअआई । उल्लूरइ सज्जुल्लूरिआइँ कुसुमाइँ दावेन्ती ॥ ९६ ॥ [ मालाकारी ललितोल्ललित बाहुमूलाभ्यां तरुणहृदयानि । उल्लुनाति सद्योऽवलूनानि कुसुमानि दर्शयन्ती ॥ ] तुरन्त चुने हुए पुष्पों को दिखलाती हुई यह मालिनी अपने सुन्दर एवं विशाल भुजमूलों से तरुणों का हृदय चुन लेती है ।। ९६ ।। मज्झो, पिओ, कुअण्डो, पल्लिजुआणा, सबत्तीओ । जह जह वढन्ति थणा तह तह छिज्जन्ति पञ्च वाहीए ॥ ९७ ॥ Jain Education International [ मध्यः प्रियः कुटुम्बं पल्लोयुवानः सपत्न्यः । यथा यथा वर्धेते स्तनौ तथा तथा क्षोयन्ते पञ्च व्याधयः ।। ] जैसे-जैसे व्याध की बहू के स्तन बढ़ते हैं वैसे-वैसे कटि पति, गाँव कुटुम्ब, के युवक, और सपत्नियाँ- ये पाँचों क्षीण होने लगते हैं ।। ९७ । मालारीए वेल्लहलबाहुमूलावलोअण सअहो । अलिअं पि भमइ कुसुमग्ध पुच्छिरो पंसुलजुआणो ॥ ९८ ॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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