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(१४) इन्द्रियों के बीच में संघर्ष हो जाय तो उनका न्याय करने वाला न्यायाधीश कौन ? तो कहना पड़ेगा कि 'प्रात्मा ही।
(१५) विश्व में प्रतिपक्ष-विरोध भी सत्-विद्यमान पदार्थ का ही होता है। जैसे धर्म-अधर्म, आर्य-अनार्य, अहिंसा-हिंसा, दया-निर्दयता; वैसे जीव का प्रतिपक्ष अजीव है। इससे आत्मा की अस्तिता सिद्ध होती है ।
(१६) माता की कुक्षि में से एक साथ में जन्मे हुए युगल बच्चों में स्वभाव इत्यादि में फेरफार क्यों ? तो. कहना पड़ेगा कि दोनों प्रात्माएँ भिन्न हैं इसलिये ।
(१७) विश्व में जिसके स्वतन्त्र पर्याय होते हैं, उसका वाच्य भी स्वतन्त्र होता है। जिस तरह अंग, शरीर, तनु, देह, काया तथा कलेवर इत्यादि देह के पर्यायों का वाच्य देह-शरीर स्वतन्त्र है। इसी तरह आत्मा, जीव, चेतन इत्यादि प्रात्मा के स्वतन्त्र पर्याय हैं। इसलिये उनसे स्वतन्त्र पात्म द्रव्य-जीवद्रव्य की सिद्धि होती है।
(१८) विश्व में परिभ्रमण करने वाले किसी को पूर्व भव के-पूर्व जन्म के जातिस्मरण ज्ञान द्वारा इस भव में भी स्मरण होता है और वह अपने पूर्व भव की परि