Book Title: Gandharwad
Author(s): Bhuvanbhanusuri
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 4
________________ दो बोल • वर्धमान तपोनिधि न्यायविशारद पूज्य आचार्यदेव श्री ने अपनी तार्किक और शास्त्रसम्मत बुद्धि से ११ गणधर भगवंतो और परमात्मा का अरसपरस संवाद रुप में शंका समाधान के माध्यम से जिन शासन के मूलभूत पदार्थो को प्रवचन माध्यम से अनेक बार संघ समक्ष प्रकाशित किया हैं। वह कलम द्वारा कागज पर अंकित किये हुए जो पूर्व मुद्रित हुऐ थें । परंतु आज अप्राप्य जैसे होने से फिर से मुद्रित किया हैं पूज्य पंन्यासजी श्री नंदीभूषण विजयजी महाराज ने पुनःमुद्रित करने का कार्य संभालकर हमे उपकृत किया हैं । श्री धर्मनाथ पो. हे. जैननगर जैन संघ ने आर्थिक सहकार देकर हमे सुंदर साथ दिया हैं | आप सब के हम ऋणी हैं मुद्रण कार्य में कहिं भी दोष क्षति रह गई हो तो क्षमा कजीएगा Jain Education International दिव्यदर्शन ट्रस्ट कुमारपाल वी. शाह For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org

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