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( २४ ) इन सबके एकार्थक इस कोश में गृहीत हैं ।
प्रस्तुत कोश में शब्दों के साथ धातुओं के एकार्थक भी संगृहीत हैं । जैसे 'उज्झीयति', 'आसाएइ', 'फासेइ, आदि । एक ही धातु के अनेक उपसर्ग लगाकर भी उसको एकार्थक माना है जैसे-'आलुक्कई पलुक्कई लुक्कई संलुक्कई य एगट्ठा' यहां 'लोकङ्-दर्शने' धातु के आगे ही विविध उपसर्ग हैं । लेकिन अर्थ की दृष्टि से साम्य है । इसके विपरीत अनेक स्थलों पर उपसर्ग के साथ ही धातु का अर्थ ही बदल गया है जैसे-'परिभासति', 'उप्पज्जते', 'उद्दवेति'" इत्यादि ।
इसके अतिरिक्त अनेक कालों में प्रयुक्त धातुओं के उदाहरण इसमें समाविष्ट हैं, जैसे-'चयाहि', 'चालिज्जाति' 'छड्डे', 'चितेहिति', इत्यादि ।
____ इसी क्रम में कृदन्त तथा तद्धित के प्रत्ययों के भी एकार्थक इसमें हैं। जैसे-छिदंत', 'पीणणिज्ज', 'सोऊण', 'नस्समाण', 'पडुच्च', 'वसित्तु', 'छर्दितुम्', 'इट्टत्ता', इत्यादि । कोश का बाह्य स्वरूप
यह कोश गद्य और पद्य मिश्रित है। इसमें मूल एकार्थक १४६७ हैं तथा करीब २०० अवान्तर एकार्थक मिलाने से करीब १७०० एकार्थकों का संकलन है। प्रत्येक एकार्थक का अर्थ-निर्देश और प्रमाण दिया गया है। उसमें लगभग ८००० शब्दों का संकलन है ।
इस कोश में अनेक भाषाओं का मिश्रण है। आगम ग्रंथों के आर्षप्रयोग सहज ही इसमें समाविष्ट हैं। इसके अतिरिक्त प्राकृत भाषा के अनेक प्रयोग इसमें हैं।
इसके साथ अनेक देशी शब्दों का संकलन भी इस कोश में स्वतः हो गया है । अनेक एकार्थकों में सभी शब्द देशी हैं। परिशिष्ट नं० २ में अनेक स्थलों पर हमने देशी शब्दों का निर्देश किया है।
भाषा की दृष्टि से इस कोश का एक वैशिष्ट्य है कि कुछ एकार्थक एक ही व्यञ्जन से शुरू हुए हैं, जैसे-'पम्हट्ठ' शब्द के पर्याय में २१ शब्द हैं । सभी शब्द 'प' से प्रारम्भ हुए हैं। इसी प्रकार 'णिस्सारित', 'उल्लोइत', "णिम्मज्जित' आदि ज्ञातव्य हैं।
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