________________
( २६) - अधिसहते-अत्यधिक सहना ।'
प्रस्तुत कोश में धातुओं के अनेक रूप निर्दिष्ट हैं। हमने इस परिशिष्ट में उनके एक-एक रूप का ही निर्देश दिया है। कालगत तथा विभक्तिगत सथा व्यञ्जनों के रूपान्तर का उल्लेख नहीं किया गया है। प्रेस में टाईप न होने से दीर्घ ऋकार वाले शब्दों के स्थान पर ह्रस्व ऋ का प्रयोग किया गया है । जैसे पृ द इत्यादि।
प्रस्तुत कोश में एकार्थकों का संकलन लगभग सौ ग्रन्थों से किया गया है। उनमें कुछेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ ये हैंभगवती ___इस ग्रंथ में जैन सिद्धान्त व दर्शन सम्बन्धी महत्वपूर्ण एकार्थक उपलब्ध हुए हैं। जैसे-'तमुक्काय', 'कण्हराति', 'पांच अस्तिकाय', 'चार कषाय' मादि । इसके साथ 'राह' के नौ नाम नवीनता लिए हुए हैं। इसके अतिरिक्त प्रकीर्णक रूप से और भी अनेक एकार्थक इसमें हैं। प्रश्नव्याकरण . इसमें पांच आस्रव के ३०-३० तथा अहिंसा के ६० पर्याय उल्लिखित हैं। सामान्यतः ये एकार्थक प्रतीत नहीं होते लेकिन टीकाकार ने बहुत स्पष्टता के साथ इनको एकार्थक स्वीकार किया है। इनकी स्पष्ट व्याख्या के लिए देखेंपरिशिष्ट २। इसके अतिरिक्त 'पाव', 'गोणस', सर्ल आदि अनेक स्फुट एकार्थकों का इसमें प्रयोग है। अनुयोगहार
अनुयोगद्वार व्याख्यापद्धति का अनूठा ग्रंथ है। इसमें प्रत्येक विषय को समझाने के लिए पहले एकार्थक दिये हैं, जैसे—'आवस्सय', 'सुत्त', 'गण' इत्यादि। आवश्यकचूणि ___ आवश्यकचूणि के एकार्थक नवीनता की दृष्टि से अपना विशेष महत्त्व रखते हैं। चूर्णिकार ने लगभग अपरिचित व अनेक शब्दों से युक्त एकार्थकों का प्रयोग किया है, जो अन्य कोशों में नहीं मिलते, जैसे-'संजमतवड्डय', 'पावकम्मनिसेहकिरिया', 'दुक्कड', 'अप्पियववहारिय' इत्यादि । १. अंत टी प २२ : सहत इत्यादीनि एकार्थानि पवानीति केचित्, अन्ये तु...
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org