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( २७ ) निशीथणि
यह आकर ग्रंथ है जिसमें प्रसंगवश सभी विषयों का विस्तार से वर्णन हुआ है । इसमें भी सुन्दर एकार्थकों का प्रयोग हुआ है। जैसे-'उखड्डमड्ड,' 'दगतीर', उक्खोडभंग' 'नयन' इत्यादि । -दशवकालिक जिनदास चणि
दशवकालिक एक महत्वपूर्ण निर्यढ कृति है। इस पर दो चूणियां उपलब्ध हैं। एकार्थक की दृष्टि से जिनदास स्थविर की चूणि महत्वपूर्ण है। इसकी विशेषता यह है कि प्रायः सभी एकार्थक दो शब्दों के हैं। कहीं कहीं तीन शब्दों का उल्लेख है। अंगविज्जा
_ 'अंग विज्जा' ज्योतिषविद्या का दुर्लभ ग्रंथ है। इसमें प्राचीन संस्कृति, सभ्यता व आभूषणों के अनेक नवीन पर्यायवाची शब्दों का संकलन है। जैसे'हत्थिक', 'कुंडल', 'अरंजर', 'णावा', 'दीहसक्कुलिका' 'काहापण' इत्यादि । इसके अतिरिक्त ग्रंथकार ने अनेक स्थलों पर 'एते सहा समा भवे' का उल्लेख किया है । इस ग्रंथ के एकार्थक प्राचीन संस्कृति व सभ्यता की समृद्धि का बोध कराते हैं। तथा लौकिक क्षेत्र में प्रयुक्त अनेक शब्दों के एकार्थक इसमें संगृहीत है। ___इसके अतिरिक्त बृहत्कल्प, ओघनियुक्ति, जीतकल्पभाष्य आदि ग्रन्थों में भी प्रचुर मात्रा में एकार्थकों का प्रयोग हुआ है।
यह कोश अपने आप में पूर्ण है, ऐसा कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि यत्र-तत्र कुछेक महत्वपूर्ण एकार्थक छूट भी गए हों। उनका संकलन परिशिष्ट में किया जाना चाहिए था, पर वैसा हो नहीं सका। आगे उसकी संपूर्ति हो, ऐसा विचार है । कार्य का इतिवृत्त
वि० सम्वत् २०३७ । चैत्र का महीना। शोध, साधना व शिक्षा की संगमस्थली जैन विश्व भारती का विशाल प्रांगण । युवाचार्यश्री महाप्रज्ञजी का प्रवास । अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों की संयोजना। लाडनूं में स्थित पारमार्थिक शिक्षण संख्या के शैक्षणिक विकास के विषय में चिन्तन चला। जैन विश्व भारती ब्राह्मी विद्यापीठ के अन्तर्गत स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ने वाली साध्वियां व मुमुक्षु बहिनें श्रद्धेय युवाचार्यश्रीजी के उपपात में पहुंची।
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