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मूर्तिपूजा के उपचार, भोजन-प्रदान
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से प्रकट किया है कि वास्तव में याग (वैदिक या अन्य यज्ञ ) एवं पूजा में कोई मौलिक भेद नहीं है, क्योंकि दोनों इष्ट देव के लिए कुछ दिया जाता है।
व्रत पर लिखे गये कुछ ग्रन्थों ने विस्तार के साथ बहुत से उपचारों के विषय में लिखा है, विशेषतः पुष्पों के विषय में, जो मूर्ति पूजा में चढ़ाये जाते हैं; पुष्प चढ़ाने के फलों, गन्ध के विविध प्रकारों या धूप, भोजन आदि के विषय में प्रभूत विस्तार पाया जाता है (हेमाद्रि, कृत्यरत्नाकर, पृ० ७०-७१, ७७-७९, वर्षक्रियाकौमुदी, पृ० १५६१८१) । स्थानाभाव से हम यहाँ संक्षेप में लिखेंगे। बहुत-सी बातें द्वितीय खण्ड में आ चुकी हैं, जो बातें वहाँ नहीं दी हुई हैं उन्हें दिया जा रहा है। स्मृतिच० ( पृ० २०१ ) ने पद्मपुराण का उद्धरण दिया है कि गन्धों में चन्दन परम पुनीत है, अगरु, चन्दन से उत्तम है, गहरे रंग वाला (कृष्ण) अगरु और भी उत्तम है, पीला अगरु कृष्ण से श्रेष्ठ है। हेमाद्रि ने 'चतुः सम' की व्याख्या की है, इसे त्वक्, पत्रक, लवंग एवं केसर ( या कस्तूरी के दो भाग, चन्दन के चार, केसर के तीन एवं कपूर का एक ) कहा है । इन्होंने सर्वगन्ध को कुंकुम (केसर), चन्दन, उशीर (खस), मुस्ता, लाज (सुगंधित घास की जड़ें ), कपूर तथा तीन सुगंधित वस्तुएँ (यथा वक्, एला, पत्रक) माना है तथा 'यक्षक दम' को कपूर, अगरु, कस्तूरी, चन्दन एवं कक्कोल ठहराया है। अग्निपुराण ( २०२ ।१ ) ने सर्वप्रथम कहा है कि हरि पुष्प, गन्ध, धूप, दीप एवं नैवेद्य से प्रसन्न होते हैं और फिर ऐसे पुष्पों का विभेद किया है जो चढ़ाने के योग्य या अयोग्य हैं। कल्पतरु ( व्रत, पृ० १८० - १८१ ) ने भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व, १९७१ - ११ ) का उद्धरण देकर पूजा में प्रयुक्त विविध पुष्पों के पुण्य-फलों का उल्लेख किया है, यथा मालती पुष्प के उपयोग से पुजारी देवता का सामीप्य पाता है, करवीर पुष्प से स्वास्थ्य एवं अतुलनीय सम्पत्ति की प्राप्ति होती है, मल्लिका के उपयोग से सभी प्रकार के आनन्द मिलते हैं, पुण्डरीक ( कमल) से कल्याण एवं अधिक काल तक रहने वाली सम्पत्ति मिलती है, सुगन्धियुक्त कुब्जक से सर्वोत्तम ऐश्वर्यं प्राप्त होता है, कमल (श्वेत एवं नील) से निष्कलंक ख्याति मिलती है, विविध मुकुरकों से रोग निवारण होता है, मन्दार से कुष्ट के सभी प्रकारों का क्षय होता है, बिल्व से धन प्राप्ति होती है, अर्क से सूर्य कल्याण करता है, बकुल पुष्पों की माला से सुन्दर कन्या प्राप्त होती है, किशुक पुष्प से पूजित होने पर सूर्य दुःख का हरण करता है, अगस्त्य पुष्पों से इष्ट देव सफलता देते हैं, कमल-पुष्प - पूजा से सुन्दर पत्नी मिलती है, वनमाला से थकावट दूर होती है, अशोक पुष्प से सूर्य पूजा करने पर त्रुटियाँ नहीं होतीं और जपा पुष्प से पूजित होने पर सूर्य पूजक को दुःखरहित करता है । निबन्धों में धूप के विषय में भी बहुत कुछ लिखा गया है । कल्पतरु ( व्रत, पू० १८२ - १८३ ) में आया है - चन्दन जलाने से सूर्य पूजक के सन्निकट आता है ( अर्थात् अनुग्रह करता है), जब अगरु जलाया जाता है तो वह वांछित फल देता है, स्वास्थ्य चाहने वाले को गुग्गुल जलाना चाहिए, पिण्डांग
प्रयोग से सूर्य स्वास्थ्य, धन एवं सर्वोत्तम कल्याण देता है, कुण्डक के प्रयोग से कृतार्थता मिलती है, श्रीवासक से व्यापार में सफलता मिलती है तथा रस एवं सर्जरस के प्रयोग से सम्पत्ति की प्राप्ति होती है । बाण ने चण्डिका के मन्दिर में गुग्गुल के जलने का वर्णन किया है ( कादम्बरी, पूर्वार्ध) । कल्पतरु ( व्रत, पृ० ६-७ ), हेमाद्रि ( व्रत ), कृत्यरत्नाकर ( पृ० ७८) ने भविष्यपुराण का उद्धरण देते हुए 'अमृत', 'अनन्त', 'यक्षांग', 'महांग' नामक धूपों का उल्लेख किया है। भविष्यपुराण ( ब्राह्मपर्व, १९८३१९ ) में आया है कि पुष्पों में 'जाती' सर्वश्रेष्ठ है, कुण्डक सर्वोत्तम धूप है, सुगंधित पदार्थों में केसर सर्वश्रेष्ठ है, गन्धों में चन्दन सर्वोपरि है, दीप के लिए घृत सर्वोत्तम है तथा
भोजनों में मोदक मिठाई सर्वश्रेष्ठ है। यह बात विचारणीय है कि गुग्गुल तथा अन्य पदार्थों का जलाना व्यावहारिक महत्त्व भी रखता है, क्योंकि इससे मक्खी-मच्छरों का विनाश होता है (देखिए गरुड़० १।१७७।८८-८९ ) ।
यह वास्तव में सत्य है कि अधिकांश व्रतों में ब्राह्मणों को खिलाया जाता था, किन्तु ऐसा समझना ठीक farai, अधों एवं निराश्रितों को सर्वथा छोड़ दिया जाता था । बहुत-से व्रतों में यह स्पष्ट रूप से व्यवस्था
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