Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 12
________________ कितनी शान्ति और सुख मिलेगा! उस स्थिति में आप क्या करेंगे?' महात्माजी! यदि ऐसी स्थिति आ जाए और मृत्यु के मुख से कोई मुझे उबार दे तो मैं उसे आधा राज्य दे दूंगा। संन्यासी बोला-'समझे महाराज! आपके राज्य का मूल्य है-सिर्फ दो गिलास पानी। एक गिलास पानी प्यास को मिटाने के लिए और एक गिलास पानी उस पानी के अवरोध (मूत्रावरोध) को मिटाने के लिए। राजा यह सुनकर अवाक् रह गया कि उसके वैभवशाली और विशाल साम्राज्य का मूल्य है-केवल दो गिलास पानी। मूल्य सदा सापेक्ष होता है। किसी वस्तु का मूल्य न ज्यादा होता है और न कम। न कोई सस्ता होता है और न कोई महंगा। देश, काल और परिस्थिति के अंकन को छोड़कर हम किसी भी वस्तु को न सस्ता कह सकते हैं और न महंगा। निरपेक्ष मूल्य किसी का नहीं होता। दृष्टिकोण दो प्रकार के होते हैं-एक अस्तित्ववादी दृष्टिकोण, दूसरा उपयोगितावादी दृष्टिकोण। अस्तित्ववादी दृष्टिकोण में सस्ता या महंगा जैसी भाषा नहीं होती, किन्तु जब अस्तित्व की दृष्टि से हटकर हम उपयोगिता के क्षेत्र में जाते हैं तो वहां 'सस्ते या महंगे' की भाषा बनती है। वहां वस्तु की उपयोगिता के आधार पर उसका मूल्यांकन होता है। धर्म के साथ जब अर्थ का सम्बन्ध जुड़ता है तब 'सस्ता और महंगा' का प्रश्न हमारे सामने आता है। जीवन के चार पुरुषार्थ हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । प्रत्येक व्यक्ति इन चारों के साथ जीता है। धर्म और मोक्ष तथा अर्थ और काम-ये दो युगल हैं। अर्थ और काम-ये दो आपस धर्म : कितना महंगा कितना सस्ता? - ३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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