Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 11
________________ नहीं होता, वह सदा सापेक्ष होता है। धर्म का ही नहीं, लगभग हर पदार्थ का मूल्य सापेक्ष होता है । / एक संन्यासी राजा से मिला । चर्चा के दौरान संन्यासी ने कहा - 'त्याग बहुत मूल्यवान् होता है ।' राजा ने इस बात से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए कहा - 'महाराज ! आपने तो बचपन में ही संन्यास ले लिया अतः आपकी दृष्टि में त्याग ही सबसे अधिक मूल्यवान् है । मूल्यवान् है 'राज्य' । इतना बड़ा अधिकार, वैभव, सम्पदा और सुख-सुविधा ! जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते । राज्य की तुलना में त्याग की कोई कीमत नहीं ।' संन्यासी ने कहा - 'महाराज ! मैं यथार्थवादी हूं, अतः बहस में उलझना नहीं चाहता, किन्तु क्या आप मेरे एक प्रश्न का उत्तर देंगे ?' राजा सहर्ष उत्तर देने को तैयार हो गया । संन्यासी ने कहा- 'आप कल्पना करें कि जंगल में गए और रास्ता भूल गए, भटक गए । जेठ की चिलचिलाती धूप । भटकते-भटकते प्यास का प्रकोप बढ़ा । दूर-दूर तक कहीं पानी का नामोनिशान नहीं । प्राण-पखेरू उड़ने की तैयारी में हैं । उस समय दैवात् कोई पथिक मिल जाए और वह एक गिलास ठंडा पानी पिला दे, तो आप क्या करेंगे?' राजा बोला- 'मैं उसे अपना आधा राज्य दे दूंगा, क्योंकि प्राणों की तुलना में आधा राज्य कुछ भी नहीं है ।' संन्यासी बोला- ' आपने ठीक ही कहा। महाराज ! कृपया एक प्रश्न का उत्तर और दें। मान लें आप कि गर्मी के कारण मूत्रावरोध हो गया । उस अवरोध से सारा शरीर चरमरा गया । बेचैनी बढ़ी और प्राण छटपटाने लगे। ऐसी स्थिति में कोई चिकित्सक आए और एक ही पुड़िया में सारा कष्ट दूर कर दे तो आपको २८ धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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