Book Title: Dharma ke Sutra
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 13
________________ में जुड़े हुए हैं। व्यक्ति में कामना होती है और कामना पूर्ति का साधन है-अर्थ। इस युगल में अर्थ है साधन और काम है साध्य। एक युगल है-धर्म और मोक्ष। मोक्ष है साध्य और धर्म है उसकी प्राप्ति का साधन। धर्म का सम्बन्ध मोक्ष के साथ है। मनुष्य का जीवन कुछ ऐसा है कि उसमें रेखाएं खींचना एक समस्या है। इतना सब घुला-मिला है कि उसे अलग करना कठिन है। हर व्यक्ति में पूर्ण विवेक नहीं होता, इसलिए आसपास की वस्तु को वह एक ही मान लेता है। आचार्य भिक्षु ने कहा-त्याग धर्म है। वह अमूल्य है। यह एक सीधी-सी बात है, पर आप कहेंगे-आचार्यश्री जहां जाते हैं वहां कितनी व्यवस्थाएं करनी पड़ती हैं और वे सारी व्यवस्थाएं अर्थ के द्वारा होती हैं। इतनी सारी व्यवस्थाओं के बाद हम कहीं धर्म की आराधना कर पाते हैं। इस दृष्टि से कितना महंगा हो जाता है धर्म? 'धर्म अमूल्य है'-यह कथन कहां तक सिद्ध हो पाता है? आचार्य भिक्षु ने इस प्रश्न के उत्तर में जो विवेचन दिया, वह मार्मिक है। विडम्बना यह है कि आचार्य भिक्षु के अनुयायी भी उनके सिद्धान्तों से पूर्ण परिचित नहीं, इसलिए उनके मन में स्पष्टताएं नहीं होतीं। वे छोटी-छोटी बातों में उलझ जाते हैं। वे उलझते जल्दी हैं और सुलझते भी जल्दी हैं। इस डांवाडोल स्थिति का मूल कारण है-तत्त्व की अनभिज्ञता। तात्त्विक पृष्ठभूमि में आस्था का दृढ़बन्ध होता है। यह बहुत आवश्यक है कि धर्म के विषय में आचार्य भिक्षु का मर्मस्पर्शी सिद्धान्त जाना जाए। धर्म के क्षेत्र में आचार्य भिक्षु ने जो मीमांसा की, जो ४ : धर्म के सूत्र Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org

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