Book Title: Devsi Rai Pratikraman
Author(s): Sukhlal
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 10
________________ अपने विनों की राम-कहानी सुनाना, कागज और स्याही को ख़राब करना तथा समय को बरबाद करना है । मुझे तो इसी में खुशी है कि चाहे देरी से या जल्दी से, पर अब, यह पुस्तक पाटकों के सामने उपस्थित की जाती है । उक्त बाबू साहब की इच्छा के अनुसार, जहाँ तक हो सका है, इस पुस्तक के बाह्म आवरण अर्थात् कागज, छपाई, स्याही, जिल्द आदि की चारुता के लिये प्रयत्न किया गया है । खर्च में भी किसी प्रकार की कोताही नहीं की गई है। यहाँ तक कि पहिले छपे हुए दो फर्मे, कुछ कम पसन्द आने के कारण रद्द कर दिये गये । तो भी यह नहीं कहा जा सकता कि यह पुस्तक सोआपूण तथा त्रुटियों से बिल्कुल मुक्त है। कहा इतना ही जा सकता है कि त्रुटियों को दूर करने की ओर यथासंभव ध्यान दिया गया है। प्रत्येक बात की पूर्णता क्रमशः होती है । इस लिये आशा है कि जो जो त्रुटियाँ रह गई होंगी, वे बहुधा अगले संस्करण में दूर हो जायेंगी। साहित्य-प्रकाशन का कार्य कठिन है । इस में विद्वान् तथा श्रीमान्, सब की मदत चाहिए । यह 'मण्डल' पारमार्थिक संस्था है । इस लिये वह सभी धर्म-रुचि तथा साहित्य-प्रेमी विद्वानों व श्रीमानों से निवेदन करता है कि वे उस के साहित्य-प्रकाश में यथासमव सहयोग देते रहें । और धर्म के साथ-साथ अपने नाम को चिरस्थायी करें । मन्त्रीश्रीआत्मानन्द-जैन-पुस्तक-प्रचारक-मण्डल, रोशनमुहल्ला: आगरा।

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