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देवीदास - विलास
प्रतीत होता है, श्री प्रेमीजी आदि के सम्मुख कवि देवीदास की सभी मूल रचनाएँ नहीं थी, इसी कारण वे कवि का समय निर्धारण नहीं कर सके। अपनी कुछ रचनाओं में से किसी-किसी रचना के अन्त में कवि ने उसका समापन वर्ष, तिथि एवं दिन का उल्लेख किया है। जैसे कवि ने 'जीवचतुर्भेदादिबत्तीसी' नामक रचना की समाप्ति वि. सं. १८१०; बुद्धिबाउनी' की वि. सं. १८१२; द्वादशभावना और विवेकबत्तीसी' की वि. सं. १८१४, उपदेशपच्चीसी की वि. सं. १८१६, वर्तमान चौबीसी - पाठ की वि. सं. १८२१ एवं प्रवचनसार" कि रचना वि. सं. १८२४ में की थी। इन उल्लेखों से कवि के रचना-काल के निर्धारण में पर्याप्त सहायता मिल जाती है।
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अद्यावधि उपलब्ध रचनाओं में प्राप्त तिथियों के आधार पर कवि की सम्भवतः प्रथम रचना 'जीवचतुर्भेदादिबत्तीसी' का समाप्तिकाल वि. सं. १८१० ज्ञात होता है। कवि की कृतियों का अध्ययन करने से उसकी लेखनी की क्रमिक प्रौढ़ता, विकास एवं विषय की गम्भीरता का स्पष्ट ज्ञान होता है । अतः उपर्युक्त रचना - समाप्ति कालों एवं विषय-प्रतिपादन की परिनिष्ठत भाषा-शैली को देखते हुए यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है, कि वि. सं. १८९० से वि. सं. १८२४ के मध्य कवि ने अपने साहित्य का प्रणयन किया । अब यदि उसने ३० वर्ष की आयु से अपना लेखन-कार्य प्रारम्भ किया हो तो उसका कुल समय वि. सं. १७८० से वि. सं.
१. "सत अष्टादस दस अधिक संवतु अस्विन मास । कृष्ण पंचमी भौम दिन पहु विरदंत प्रकास । । ' २. " संवतु साल अठारह से पुनि द्वादस और धरौ अधिकारे । चैतसुदी परमा गुरुवार कवित्त जबै इकठे करि धारे।।” ३. " संवत् १८१४ भादौं सुदि १३ सनउ ।”
४. “ साल अठारह सौ सु फिर धरौ चतुर्दस और ।
दुतिय कुंवार सुदी द्वादसी गुरवासर सुय ठौर । ।'
५. “संवत् १८१६ ज़ैठ वदी १२ लिखित ललितपुर मझा सुहस्त । "
६. "इतिश्री वर्तमान जिन पूजा भाषा देवीदास कृत सम्पूर्ण समाप्तं । संवतु, १८२१ वर्ष अस्वनि सुदी ३ भौमवासरे शुभं भवतु । लिखी गाँव दुगौड़े अथ प्रभावना अंग कारन निरभिलास । । "
७ " संवत १८२४ की ससाल है। सावन सदी स आठै परयो सोमवार है । "
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