Book Title: Devidas Vilas
Author(s): Vidyavati Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
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३२६
देवीदास - विलास
वर जिन गुन सुनकर जिनुक्त, पावापुर चढ़ पहुँचे सुमुक्त।
जिन गुण अनन्त सु समुद्र टेक, मति भाजन अल्प भर कितेक ।। २५ ।।
सोरठा
निश्चय गुन विध चार, दर्शन - ज्ञान - अनन्त सुख ।
बलवीरज सु अपार, सिद्ध भये गुन आठ गुण । । २६ ।। ॐ ह्रीं श्रीवर्द्धमानजिनचरणाग्रे जयमालार्धं ।
गीतिका
विधि पूर्व जो जिन बिम्ब पूजै दरब अरु पुन भावसौं। अति पुण्य की तिनकौं सुप्रापति होय दीरघ आयुसों । जाके सुफल कर पुत्र -धन-धन्यादि देह निरोगता । चक्रेश-खग-धरणेन्द्र-इन्द्र सुहोहि निज सुख भोगता ।। २७ ।।
पुष्पाञ्जलि |
(२६) अंग-पूजा
दोहा
लै करि परम उछाह सै, प्राशुक निरमल नीर । जासों पूजों वृषभ जिन, आदि अन्त महावीर । । १ ।।
ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तजिनचरणाग्रेषु जलम् निर्वपामीति स्वाहा ।
शीतल चन्दन गारि अति, परिमल गुण गम्भीर ।
जासों पूजों वृषभ जिन, आदि अन्त महावीर । । २ ।।
ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तजिनचरणाग्रेषु चन्दनम् निर्वपामीति स्वाहा ।
परम अखण्डित ऊजरे, अक्षत लै समरवीर ।
जासों पूजों वृषभ जिन, आदि अन्त महावीर । । ३ । ।
ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तजिनचरणाग्रेषु अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामिति स्वाहा
पहुप सुवासी तुरत के, फूले सरस सुधीर ।
जासों पूजों वृषभ जिन, आदि अन्त महावीर । । ४ । ।
ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तजिनचरणाग्रेषु कामवाणविध्वंशनाय पुष्पम् स्वाहा।
व्यंजन विधि प्रकार जे, करन क्षुधा दुखकीर ।
जासों पूजों वृषभ जिन, आदि अन्त महावीर ।।५।।
ॐ ह्रीं वृषभादिवीरान्तजिनचरणाग्रेषु क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् स्वाहा।
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