Book Title: Devidas Vilas
Author(s): Vidyavati Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 393
________________ कवि देवीदास ने रीतिकाल में भी अध्यात्म एवं भक्ति की जैसी गंगा-जमुनी धारा प्रवाहित की वह बुन्देली-हिन्दी साहित्य के इतिहास की स्वर्णिम रेखा बनकर उभरी है। डॉ. विद्यावती जैन ने कठोर परिश्रम कर साहित्य जगत के एक विस्मृत महाकवि देवीदास की अधिकांश अप्रकाशित दुर्लभ रचनाओं का उद्धार कर उनका आधुनिक मानदण्डों के अनुरूप सम्पादन किया तथा विविध दृष्टिकोणों से उनकी तुलनात्मक एवं साहित्यिक समीक्षा प्रस्तुत की। मौलिक ग्रन्थ-लेखन की अपेक्षा प्राचीन जीर्ण-शीर्ण पाण्डुलिपियों का सम्पादन जितना दुरूह है, उतना ही वह धैर्यसाध्य, कष्टसाध्य एवं व्ययसाध्य भी। फिर भी सम्पादिका ने इस दिशा में जो श्रमसाध्य कार्य किया है वह प्रेरक एवं सराहनीय है। वस्तुतः हिन्दी के अनुसन्धित्सुओं के लिए यह ग्रन्थ एक बहुमूल्य उपहार है। .....लोक कल्याण की भावनाओं का गान करने में कवि देवीदास ने जहाँ एक ओर यमन, बिलावल, सारंग, जयजयवंती, रामकली, दादरा, गौरी, केदार, धनाश्री आदि राग-रागनियों का सहारा भी लिया है, वहीं दूसरी ओर उसने भक्ति के शास्त्रीय एवं सहज दोनों पक्षों का प्रभावक शैली में उद्घाटन करके भक्तिभाव को जन सामान्य के लिए भी सहज बना दिया है। ....कवि देवीदास की काव्य-रचनाएँ यद्यपि अध्यात्म एवं भक्तिपरक हैं, फिर भी, उनमें काव्यकला के विविध रूप उपलब्ध हैं। प्रसंगानुकूल रसयोजना, अलंकार-वैचित्र्य, छन्द-विधान, प्राकृतिक वर्णनों की छटा, भावानुगामिनी-भाषा तथा मानव के मनोवैज्ञानिक चित्रणों से उनकी रचनाएँ अलंकृत बन पड़ी है। देवीदास-साहित्य हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है क्योंकि उसमें आध्यात्मिक रहस्यों की चिन्तन पूर्ण अभिव्यक्ति के साथ उनकी चित्रमयता. मनोवैज्ञानिकता. स्वाभाविकता, सजीवता एवं मौलिकता विद्यमान है। उन्होंने साहित्य में अनेक छन्दों के प्रयोग के साथ मडरबन्ध गतागत छन्द आदि लिखकर समस्त हिन्दी जगत में अपने विशिष्ट काव्य-कौशल की छाप छोड़ी है और इस माध्यम से जहाँ उन्होंने बुन्देली प्रतिभा के गौरव को उज्ज्वल किया है वहीं हिन्दी जगत में हिन्दी जैन साहित्य को प्रथम पंक्ति में अग्रस्थान दिलाने का भी सत्प्रयत्न किया है। sonals Private Use Only www.jainelibreg

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