Book Title: Devidas Vilas
Author(s): Vidyavati Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 384
________________ ३५६ देवीदास-विलास वेढे- घेरना; घिरा हुआ (चक्र. ११२) श्रावस्ती- श्रावस्ती नगरी (संभव. ४५) वेणुरानी-वेणु नामकी रानी (श्रेयांस. ४४) श्रीखण्ड- श्रीखण्ड वृक्ष (सुपार्श्व. ५२) वेद्यौ- बीघना; छेदना; जानना (पंच. श्रीफल- मांगलिक फल; नारियल (रूढार्थ) १४।३) (आदि. २७) वेदना- दुख, कष्ट (वीत. ६।४) श्रीमती- श्रीमती नामकी रानी (कुंथ. ६३) वेदनी- वेदनीय कर्म. (शान्ति. ११) श्रुत- शास्त्र, आगम. सुनना; वेद (दसधा. वेदी- जानकार (बुद्धि. २७।६) १२।२) वेदै- कष्ट सहना (वीत. ५।६) श्रुभ- शुभ (चक्र. २८।१) वेमरजादी- मर्यादारहित (जन्म. १९) श्रेयांस- श्रेयांस राजा (आदि. ५४) वेरा- समय (पार्श्व. ३७) भैनिक- श्रेणिक राजा (वीत. २२।२) वेवहार- व्यवहार (दरसन. २०।४) षटा- खटपट, लड़ाई (बुद्धि. ४९।२) वेसु- वेश्या (सप्त. १।१) षटु- षट् (जिनांत. २।२) वेसुवा- वेश्या (बुद्धि. ४९।२) ह- राख (बुद्धि. ११५) वैजयन्त- वैजयन्त नामका विमान (चक्र. स्यादवाद- स्याद्वाद (विवेक. १२।१) ५६) स्वजोग- संयोग (बुद्धि. १०११) वैद- वैद्य (पुका. २।२) स्वर्गपुरी- स्वर्गपुरी (पंच. २५।६) वैरोटि-वैरोटि नामकी दवी (अनन्त.६३) स्वांगु- रूप धारण करना (बुद्धि. ३२।१) वैस- वैश्य (व्यापारी) (विवेक. ११।१) स्वारथ- स्वार्थ (विवेक. ७।२) वोजि- बोझ (उपदेश. १३।२) संग- अन्तर एवं बाह्य परिग्रह (जोग. वोट- ओट (चक्र. ३७।१) २००३) वोरहीं- डुबाना (अरह. २८) संख-शंख (जीवचतु. १६।२) वौरा-बौरा; गूंगा, मूक (दरसन. १२।४) संछेप-संक्षेप (दसधा. २।३) व्रद्धि- वृद्धि (दरसन. ६।२) , संजुक्त- संयुक्त (धर्म. १९।१) श्यामजीरा- श्यामजीरा नामका चाँवल संतपुरिष- सन्तपुरुष (पंच. ९।५) (श्रेयांस. ८) संवाहन- वाहन-(चक्र. ५।१) श्वाद- स्वाद (धर्म. १६१२) सकति- शक्ति (वीत. ९।१) शालवृक्ष- शाल नामका वृक्ष (संभव. सर्की-सरकना, खिसकना (तीनमूढ. ५१) २३।२) शिव- शिव (परमा. १६।१) सखा- मित्र (पद. ९८) शिवदेवी- शिवादेवी रानी (नेमि. ५१) सघाती-अपनी हानि करने वाला (तीनमूढ़. शुक्र- शुक्र नामका स्वर्ग (वासु. ४५) १३।१) शैलपुरी- शैलपुरी नगर (पुष्प. ५४) सटा- सटना, लिपटना (बुद्धि. ४९।२) श्रावण- श्रावण नक्षत्र (श्रेयांस. ४८) सठ- मूर्ख (पद. १।१२) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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