Book Title: Devidas Vilas
Author(s): Vidyavati Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 356
________________ ३२८ देवीदास-विलास ध्वनि सु दिव्य जिनेश निरक्षरी, सप्तभंग विषै जिहि के परी। गुण सुमण्डित श्रीजिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जू।।३।। ॐ ह्रीं दिव्यध्वनिप्रातिहार्यगुणमण्डितश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अयम्। चमर-चौसठ ले सुर ढारहीं, शिखर सों जलधार मनौ वही। गुण सुमण्डित श्री जिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जू।।४।। ॐ ह्रीं चमरप्रातिहार्यगुणमण्डितश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अयम्। अति उमंग सु आसन सोहनी, सकल जीवन को मन मोहनी। गुण सुमण्डित श्री जिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जू।।५।। ॐ ह्रीं सिंहासनप्रातिहार्यगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अय॑म्। वरण पंच विौं तसु पाइये तन सु जे जिन सर्व सु गाइये। गुण सुमण्डित श्री जिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जु।।६।। ॐ ह्रीं भामण्डलप्रातिहार्यगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। बजत दुन्दुभि शब्द सुहावनै, सुनन कान विर्षे मन भावनै। गुण सुमण्डित श्रीजिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जू।।७।। ॐ ह्रीं दुन्दुभिप्रातिहार्यगुणमण्डितश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। उष्णकाल मनौं सु दुपाहरी रवि समान सु छत्र प्रभाधरी। गुण सुमण्डित श्रीजिनदेव जू, करहु लै जल आदि सु सेव जू।।८।। ॐ ह्रीं छत्रत्रयप्रातिहार्यगुणमण्डितश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम्। दोहा चौवीसों जिनवर सहित, प्रातिहार्य विधि आठ। सो वरनैं पूजा विर्षे, देख जिनागम पाठ।। ॐ ह्रीं अष्टप्रातिहार्यगुणमण्डितश्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु पूर्णार्घ्यम्। (२८) अनन्तचतुष्टय-पूजा चौपही-छन्द ज्ञानावरणी कर्म विनासे, ज्ञान अनन्त भयौ सब भासे। - जिनसम देव अवर नहिं दूजा, लै जलादि कीजे भवि पूजा।।१।। ॐ ह्रीं अनन्तज्ञानगुणमण्डित श्रीवृषभादिवीरान्तचरणाग्रेषु अर्घ्यम् निर्वपामीति स्वाहा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394