________________
७४
देवीदास-विलास ८. “द' के स्थान पर "ब" आदेश। जैसे- देहुरौ-बेहुरौ (जोग. १३/३)। ९. "य" के स्थान पर “ई” “ज' एवं 'व' का आदेश। जैसे' नायक-नाईक (पंचपद. १/२); युग-जुग (पंचपद. २०/६);
आयु-आव (मारीच. १४/७); उपाय-उपाव (जोग., २४/२)। १०. "ल" के स्थान पर "र"। यह बुन्देलखण्डी-बोली की विशेष प्रवृत्ति .
है। उदाहरणार्थगला-गरौ (राग., ८) मूल-मूर (जोग. १३/२);
चंडाल-चंडार (पंचपद. २३/३)। ११. स, श, एवं ष के स्थान में मूल रूप से 'स' की प्रवृत्ति को अपनाया
गया हैं। किन्तु कहीं-कहीं "स" के स्थान पर “श” का प्रयोग भी किया गया है। जैसेसदा-शदा (परमानंद., ६), सहित-शहित (परमानंद., १/१); स्वादश्वाद (धर्म. १६/२); शरीर-सरीर (परमाननंद., १६/२); शिव-सिव
(परमानन्द., १७/१), शुद्ध-सुद्ध (परमानंद. १५/१)। बुन्देली बोली का एक सुन्दर उदाहरण
आलोच्य ग्रन्थ में नेमिनाथ के बाल-वर्णन में बुन्देली-बोली का ठाट निराला ही है। उसका सौन्दर्य निम्न पद्य में देखिए
"कारे हैं किसोर सो झुलाए वाही अंगुली सौं, कारे पसु बंधे बध काजै देखि कारे भए।।" ......
कारी कंदला में गही गिरनार गली है।" पंचवरन. २/१/२ इसी प्रकार
बखाननी कुवाद की कुवात वे सवाद की। कुगैल है अदाद की विषाद चित्त में भरे। छकीय मोह फाँद की सुपन्द्रहूँ प्रमाद की।
अपातता अनाद की मलीन आतमै करै।। बुद्धि. २/१६/४९ और भी
पियै सुरा सुपान सी कियै कुरा कुमान सी। उडैलनी अऊत सी छडैल छीद छूत सी। भडैल भीत भूत सी कलैस को भडारि है। बुद्धि. २/१६/४८
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org