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संगीत- बद्ध-साहित्य - खण्ड
तुम अनुपदुति और पदारथ जे जग मैं वदसूले।
कबडी कौं बहु बार बिकानैं पात विषै होइ मूले । । ४ । । चेतनि एक समै अनभौ रस पीकर छोडि भरम बघरूले । देवियदास मिलै तुम्हरौ पद आनि तुम्हैं पग धूले । । ५ । । चेतनि. (१४) राग सारंग
आतम-अनभव सार जगत महि आतम-अनभव सार ।
समर समय तन-मन सुवचन क्रत रहित सकल व्यापार । । १ । । जगत. जासु समैं नौ दर्वभाव विधि कर्मनि सौं न लगार ।
मोख स्वरूप सदा निरविकलप वर्जित मोह विकार । । २ । । जगत.
सुभ परिनामनि केवल उपजत सुक्रत सुफल दातार। सुरनर सुख भुगतत दुख गरभित जीव अनेक प्रकार ।। ३।। जगत. उतपति दुख असुभ परिनामनि त्रिजग नरक गति धार । सुखदुख एक विमल चितवनि मैं हेय करम बडवार।।४।। जगत. श्रवन कथन उवदेस चितवन भजन क्रियादिक आर । देवियदास कहत इह विधि सौं कीजे स्वगुन सम्हार ।। ५ ।। जगत. (१५) राग सोरठ
नीच गति परिहै सुमरि नर नीच गति परि है।
मगन विषय कषाय रस जिम लौंन जल गरिहै । । १ । । सुमरि
कुमति रचि खेलत जुवा नहि विघन कौं डरिहै ।
पोषिअ छन मास भक्षन अति निरस करिहैं । । २ । । सुमरि०
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खात मदिरा पानि तसु घूमत सुमत हरि है।
रमत तन गनिका सुजन जग मांहि सुदरिमरि है । । ३ । । सुमरि
करत नित आखेट सो सब जियनि कौं अरि है।
त्रास पुनि परतक्ष चोरी करत बेदरि है । । ४ । । सुमरि
मुगध नर परनारि के रस रंग अनुसरि है। कुगति देवियदास सात सु विष्णतरु फरि है । । ५ । । सुमरि (१६) ख्याल दादरौ
दरद भई जिनदेव तुम दरसन विनु मोकौं दरद भई । जिनदेव दीनदयाल गरीब नवाजन या अरजी सुनि लेउ । । १ । । तुम.
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