Book Title: Devidas Vilas
Author(s): Vidyavati Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

View full book text
Previous | Next

Page 339
________________ चतुर्विशंतिजिन एवं अन्य पूजा-साहित्य-खण्ड वावन चंदन सर्व स्वदाह निकंदन हारौ। परिमल सहित कपूर सु केशर मिश्रित गारौ। जासम. ।।३।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु संसारतापविनाशनाय चंदनम् निर्वपामीति स्वाहा। तन्दुल उज्ज्वल धोय विवर्जित पुनि रक्ताई। परम अखंडित सरस सुवास कही नहिं जाई। जासम. ।।४।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु अक्षयपदप्राप्तये अक्षतम् निर्वपामीति स्वाहा। कमल केतकी वेल सुतार निहार चमेली। निजकर धरि सुद्ध न्यार सुमाल हथाहथ झेली। जासमः ।।५।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु कामवाणविध्वंशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। बाबर पुरिया पेराक तुरत खाजा कर फैनी। इव आदक पकवान सुरस उपजौ घर जैनी। जासम. ।।६।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यम् निर्वपामीति स्वाहा। वाती घृत भर पूर सु पावक लै उजयारी। प्रगट महातम दीप महातम नाशनहारी। जासम. ।।७।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु मोहान्धकारविनाशनाय दीपम् निर्वपामीति स्वाहा। पावक मध्य सुहोय न हेत सु धूप सुवासी। चन्दन आदि मिलाकर उत्तम वस्तु सु खासी।जासम. ।।८।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु अष्टकर्मदहनाय धूपम् निर्वपामीति स्वाहा। जातीफलु पुंगीफल श्रीफल दाख छुहारे। आम अनार कपित्थ सु दुःख निवारन हारे।जासम. ।।९।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु मोक्षफलप्राप्तये फलम् निर्वपामीति स्वाहा। वारि सुगन्ध सु अक्षत फूल सु व्यंजन ताजे। दीपक धूप दशांग सु लै उत्तम फल साजे।जासम. ।।१०।। ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनचरणाग्रेषु अनर्थ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा। गीतिका हम निरख जिनप्रतिबिम्ब पूजत त्रिविधि कर गुण थापना। तिनके न कारज सारनैं कल्याण हेत सु आपना।। जैसे किसान करै जु खेती नाँहि नरपति कारनें। अपनौं सु निज परिवार पालन कौं सु कारज सारनें। पूर्णाघ।।११।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394