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देवीदास - विलास
लोहवाहिनी तीखन छुरी जिस चमकैं चपला दुति दुरी ।
ए सब वस्त जात भूमांहि, चक्री छूटि और घर नांहि ।। ४२ ।।
दोहरा
मनोवेग नामा कनय ग्रंथन कहौं विख्यात ।
खेट भूतमुख नाम है दोनों आयुध जान ।। ४३ ।।
चौपई
आनंद भेरी दसदोई बारह जोजन लौं धुनि होई । बज्रघोष फुनि जिनकौं नाम बारह पटह नृपति कैं धाम ।।४४।। वर गंभीरावर्त्त गरीस सोभत रूप संख चौबीस ।
नाना वरन् धुजा रमनीय अठतालीस कोट मिति की ।। ४५ ।।
इत्यादिक बहु वस्तु अपार वरनन करत न लहिये पार । महल तनी रचना असमान जिनमत कही सु लीजौ जान ।। ४६ ।।
दोहरा
चक्री नृप की संपदा कहै कहा हैं कोई । पुन्यबेल पूरववई फली सांथिनी सोइ ।। ४७ ।।
चौपई
अब सुनि आठ जात के भूप जिनकौं जिनमत कहौ सरूप । कोटि गांव को अधिपति होइ राजा नाम कहावै सोइ ।। ४८ ।। नवै पांच सौ राजा जाहि अधिराजा नृप कहिये ताहि । सहसराय जिस माने आन महाराज राजा वह जान ।। ४९ ।। दोय सहस नृप नवै असेस मंडलीक वह अध नरेस | चार सह जिस पूजे पाइ सोइ मंडलीक नर राइ । । ५० ।। आठ सहस भूपन कौ ईस मंडलीक सो महा महीस । सोला सहस वै भूपाल सो अधचक्री पुन्य विसाल । । ५१ । । सहस बत्तीस आन जिस वहै ताहि सकल चक्री बुध कहै । सो यह चक्रवर्त्ति की निधी जिनमत मैं सुभाषी विधी । । ५२ ।।
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