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________________ २०२ देवीदास - विलास लोहवाहिनी तीखन छुरी जिस चमकैं चपला दुति दुरी । ए सब वस्त जात भूमांहि, चक्री छूटि और घर नांहि ।। ४२ ।। दोहरा मनोवेग नामा कनय ग्रंथन कहौं विख्यात । खेट भूतमुख नाम है दोनों आयुध जान ।। ४३ ।। चौपई आनंद भेरी दसदोई बारह जोजन लौं धुनि होई । बज्रघोष फुनि जिनकौं नाम बारह पटह नृपति कैं धाम ।।४४।। वर गंभीरावर्त्त गरीस सोभत रूप संख चौबीस । नाना वरन् धुजा रमनीय अठतालीस कोट मिति की ।। ४५ ।। इत्यादिक बहु वस्तु अपार वरनन करत न लहिये पार । महल तनी रचना असमान जिनमत कही सु लीजौ जान ।। ४६ ।। दोहरा चक्री नृप की संपदा कहै कहा हैं कोई । पुन्यबेल पूरववई फली सांथिनी सोइ ।। ४७ ।। चौपई अब सुनि आठ जात के भूप जिनकौं जिनमत कहौ सरूप । कोटि गांव को अधिपति होइ राजा नाम कहावै सोइ ।। ४८ ।। नवै पांच सौ राजा जाहि अधिराजा नृप कहिये ताहि । सहसराय जिस माने आन महाराज राजा वह जान ।। ४९ ।। दोय सहस नृप नवै असेस मंडलीक वह अध नरेस | चार सह जिस पूजे पाइ सोइ मंडलीक नर राइ । । ५० ।। आठ सहस भूपन कौ ईस मंडलीक सो महा महीस । सोला सहस वै भूपाल सो अधचक्री पुन्य विसाल । । ५१ । । सहस बत्तीस आन जिस वहै ताहि सकल चक्री बुध कहै । सो यह चक्रवर्त्ति की निधी जिनमत मैं सुभाषी विधी । । ५२ ।। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003998
Book TitleDevidas Vilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavati Jain
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1994
Total Pages394
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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