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४. शास्त्रीय संगीत-बद्ध-पद-साहित्य खण्ड
क. राग-रागिनी-पद
____ (१) राग केदारौ गुर निरगंथ हमारे वसत उर गुर निरगंथ हमारे। प्रजली ध्यान अगिनि तिन्हि के घट विकट मदन बनजारे।।१।। वसत. तजि चौबीस प्रकार परिग्रह पंच महाव्रत धारे। पंच समिति जुत तीनि सल्य चुत वस धावर रखवारे।।२।। वसत. सुद्धपयोग भोग परिपूरन अधरम चूरनहारे। रतनत्रय मंडित तप संजिम सहित दिगंबर भारे।।३।। वसत. भूख त्रसादिक सहत परीसह तीनि भुवन उजियारे। मन वच काइ निरोधि सोधि तिनि सब भव-भ्रम तजि डारे।।४।। वसत. स्वपर दया सुख सिंधु गुनाकर सील धुरंधर प्यारे। देवियदास गयौ तिन्हि कौं पथ तिन्हि, तिन्हि तैं सवतारे।।५।। वसत उर गुर निरगंथ हमारे।।
(२) राग सोरठ तिन्हि निज पर गुन चीन्हौं रे भाई तिन्हि निज पर गुन चीन्हौं रे।।टेक।। चेतनि अंक जीवनि जल छन जड सु अचेतनि रीन्हौ रे। भाई तिन्हि निज पर गुन चीन्हौं रे।।१।। दरसन ज्ञान चरन जिन्हि के घट प्रगट भये गुन तीन्हौरे। जाननहार हतौ सोई जान्यौ लखनहार लखि लीन्हौं रे।।२।।भाई तिन्हि. ग्राहक जोग वस्तु' ग्राहज करि त्याग जो गत जि दीन्हौ रे। धर नैंकी सुधारना धरि पुनि करनै काजु सुकीन्हौ रे।।३।।भाई तिन्हि. सब रागादि विभाव परिनमन समय-समय प्रति खीन्हौं रे। देवीयदास भयो सिव सनमुख सौ तजि संग उछीन्हौं रे।।४।। तिन्हि निज पर गुन चीन्हौं रे भाई तिन्हि निज पर गुन चीन्हौ रे।। (१) मूल प्रति - “वस्त"
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