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पुराणेतिहास - साहित्य-खण्ड
सूरजप्रभ श्रुभ छत्र महान सो अति जगमगाइ ज्यौं भान । सौनन्दक असि अधिक प्रचंड जरै देखि बैरी बलवंड ।। २८ ।। पुनि अजोध सेनापति सूर जो दिगविजै करै बलभूर । बुधिसागर प्रोहित परवीन बुधि निधान विद्यागुण लीन ।। २९ । । थापित भद्रमुख नाम महंत सिलपकला कोविद गुनवंत । काम वृष्टि ग्रहपति विख्यात सब ग्रह काज करै दिन रात ।। ३० ।।
ब्याल विजैगिरि अति अभिराम तुरंगतेज पवनंजय नाम । बनिता नाम सुभद्रा कही चूरै वज्रपान सौं सही । । ३१।। महादेह बल धारै सोइ जा पटतर तिय और न कोय | मुख्य रतन ये चौदह जान और रतन को कौन प्रमान ।। ३२ ।। t दोहरा
राज अंग चौदा रतन विविधि भांति सुखकार । जिनकी सुर सेवा करै पुन्य तरोवर डार ।। ३३ ।। चकि छत्र असि दंडए उपजै आवध थान। चर्म काकिनी मन रतन श्रीग्रह उतपति जान ।। ३४ ।।
गज तुरंग तिय तीन ए रूपाचल पै होय । चार रतन बाकी विमल निजपुर लहै उदोत । । ३५ ।। अन्य वैभवचौपई
मुख्य संपदा कौ विरतंत आगे और सुनौ मतिवंत । सिंघवाहिनी सेज मनोग सिंघारूढ चक्क वै जोग ।। ३६ ।।
आमनतुंग अनुत्तर नाम मानक जटित जाल अभिराम । अनुपमानामा चमर अनूप गंगा तरल तरंग सरूप ।। ३७।। विद्युति दुति मनकुंडल जोट छिपै ओर दुति जिनकी वोट । कमच अवेद - अभेद महान जामैं भिदै न बैरी बान ।। ३८ ।। विषमोचिनी पादुका दोइ परपद सौं विष मुंचै सोइ । । अजितंजय रथ महारवन्न जल पै थलवत करै गवन्न ।। ३९ ।। बज्रकोड चक्रीधर चाप जाहि चढावै नरपति आप। बान अमोघ जब कर लेत रन मैं सदा विजैवर देत ।। ४० ।।
विकट वज्र तुंडा अभिधान सत्रु खंड निसकती जान | सिंघाटक वरछी विकराल रतनडंड लागी रिपुकाल । । ४१ ।।
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