Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 13
________________ * समाज के ऊपर कुछ भी पडे. खैर तिस परभी आप हमारे किसी साधुसे ही शास्त्रार्थ करना चाहते हैं, तो हम तैयार हैं. आप यहां के श्रीसंघ को शास्त्रार्थ की तयारियां के लिये सूचना करें, जिससे कम से कम यहां के श्रीसंघ को तो फायदा हो. संघ को एकत्रित करें, उस समय हम को सूचना करना. जरासा इस बताका भी खुलासा करियेगा कि, आप के गुरुजी श्रीमान् सुमतिसागरजी किसी की आज्ञा में हैं या स्वतंत्र हैं ? आपका--विशालविजय. श्रीमान् विजयधर्म सृरिजी, आपकी तर्फ से पत्र मिला, उस में आप शास्त्रार्थ को उडाने की प्रवृत्ति करते हैं, यह योग्य नहीं है. मैं आपकी 4 पत्रिकाओं की अनुचित बातोंपर शास्त्रार्थ करना चाहता हूं. 1 मंदिरजी में भगवान की पूजा आरतीकी बोलीके चढावे का मुख्य हेतु आपने क्लेश निवारण का ठहराया है. .. 2. पूजा आरती के चढावे का द्रव्य देव द्रव्य खाते संबंध नहीं रखता है, ऐसा लिख कर साधारण खाते ले जानेका आपने ठहराया है. . 3 देवद्रव्य की वृद्धि बहुत हो गई है, इस लिये अभी देव द्रव्य बढाने की जरूरत नहीं है, ऐसा लिखा है. .. 4 देवद्रव्य की वृद्धि के लिये बोली बोलने का चढावा करनेका पाठ कोईभी शास्त्र में नहीं है, ऐसा लिखा है. 5 पूजा आरती वगैरह के बोली बोलने के चढावे का द्रव्य साधारण खाते में ले जाने में कोई प्रकार का शास्त्रीय दोष नहीं आता है, ऐसा लिखा है. 6 स्वप्न उतारने वगैरह का द्रव्य देव द्रव्य नहीं हो सकता इसलिये साधारण खातेमें लेजाने का ठहराया है.

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