Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 17
________________ हैं, वैसे ही मैं भी चाहता हूं. मगर देवद्रव्य की आवक को साधारण खाते ले जाने संबंधी आपकी नवीन प्ररूपणा व्यवहारिक दृष्टिसे और शास्त्रीय दृष्टि से भी अनुचित होनेसे इस विषय का विशेष निर्णय होने के लिये शास्त्रार्थ करना पडता है. इस लिये आप को उचित है कि शुष्क विवादकी हेतु भूत अन्यान्य बातें बीचमें लाना छोडकर धर्मवादके लिये प्रतिज्ञा, मध्यस्थ वगैरह व्यवस्था करनेको जल्दी से स्वीकार करेंगे. 4 मेरा शास्त्रार्थ आपके साथ है, आपकी तर्फसे कोई भी पत्र लिखे, मगर मैं तो आपको ही लिखुंगा. जबतक कि आप प्रतिज्ञा करके अपनी तर्फसे शास्त्रार्थ करनेवाले मुनिका नाम न लिख भेजेंगे... महेरबानी करके ऊपरकी तमाम बातोंका अलग अलग खुलासा लिखनाजी. संवत् 1978 चैत वदी 10; मुनि-मणिसागर, इन्दोर. . इन्दोर सिटी, चैत वदी 10, 2448. श्रीयुत मणिसागरजी, . .. आप का ' चौबे का चीठा ' मिला. जो मनुष्य एक दफे यह लिखता था कि ' मैं इन्दोरकी राज्यसभा में शास्त्रार्थ करने को तैयार हूं" वह आज इन्दोर के सेठियों को एकत्रित कर शास्त्रार्थ का निश्चय नहीं कर सकता है, यह कितने आश्चर्य की बात है ? संघके एकत्रित करने की गर्ज हमको नहीं पडी है। यदि आपको शास्त्रार्थ कर विजय पताका फर्राने की सात दफे गर्ज पडी हो, तो आप संघ को एकत्रित करिये और हमको बुलाइये / जिस गांव में शास्त्रार्थ करना है, उस गांव का भी संघ शास्त्रार्थ में सम्मिलित नहीं होता है, तो फिर तुम्हारे साथ थूक उडाने में फायदाही क्या है ? ___ बाकी आचार्य महाराज श्री की प्रत्रिका में आपने जो जो अनुचित बातें देखी हैं, वह आप के बुद्धि वैपरीत्य का परिणाम है, यह बात.

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