Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 63
________________ [13] भगवान्की पहिली पूजा-आरती मैं करूं तो मेरा कल्याण-मंगल होवे, . वर्षभर भगवान् की भक्ति में जावे इसी निमित्त से मेरा द्रव्य भगवान् की भक्ति में लगेगा तो मेरी कमाई की महेनत सफल होगी इत्यादि शुभ भावनासे भगवान् की भक्तिकें लिये ही बोली बोलने का चढावा होता है. 21 आज बडे पर्वका दिन है, महाभाग्यशाली होगा जिसकी न्यायपूर्वक सुकृत की कमाई होगी, और जिसका महान् पुण्य का उदय होगा, उस भाग्यशाली को आज भगवान् की पहिली पूजा-आरती करने का लाभ मिलेगा और उसका ही धन आज बडे दिन में भगवान् की भक्ति में लगेगा इस प्रकारसे चढावे के समय समाज की तर्फ से कहने में भी आता है इसलिये भी पूजा आरती वगैरह की बोली बोलनेका मुख्य हेतु भगवान् की भक्ति और देवद्रव्य की वृद्धि का ही सिद्ध होता है. . 22 भगवानकी पूजा आरतीके चढावेके समय भाव चढते रखो, नाणा (धन) मिलेगा मगर टाणा ( अवसर ) नहीं मिलेगा. आज अमुक महापर्वका दिवस है, लक्ष्मी अस्थिर है, भगवान्की भक्तिका लाभ लीजिए इत्यादि कथनसे भी भगवान्की भक्तिही देखनेमें आती है. - 23 पर्व के दिनोंमें बडे बडे आदमियोंको इकठे होकर भगवान् की भक्तिके लिये बडा बडा चढावा बोलते हुवे देखकर गरीब आदमियोंके भाव भी बहुत निर्मल हो जाते हैं. मनमें विचार करते हैं कि धन्य है इन बडे आदमियों को, जिन्होंने पूर्व भवमें सुकृत किया है इसलिये इनको यहांपर सर्व प्रकार की सामग्री मिली है. इससे इतना द्रव्य खर्च करके भी पहिली भक्ति यह आज करते हैं, मैंने पूर्व भवमें सुकृत नहीं किया इसलिये गरीब हुआ हूं, प्रभु भक्ति के लिये ऐसी सामग्री मेरे को नहीं मिली. यदि पूर्व भवमें मैं भी सुकृत करता तो मेरेको भी इस भव में सर्व सामग्री मिलती तो मैं भी इस से ज्यादे द्रव्य भगवान् को

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