Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 67
________________ [17] . 3 भगवान की पूजा आरतीके चढावे का द्रव्य देवद्रव्य के . साथ संबंध रखता है या नहीं? भगवान्की पूजा आरतीकी बोली बोलनेका द्रव्य देवद्रव्यके साथमें संबंध नहीं रखता है ऐसा लिखकर विजयधर्मसूरिजीने उस द्रव्यको साधारण खातेमें लेजानेका ठहराया है, सो सर्वथा अनुचित है, देखिये :- 29 जैसे मंदिर में भगवान् के सामने अक्षत (चावल), फल, नैवेद्य (मिठाई ) वगैरह चढाने में आते हैं, उन में स्वाभाविक ही अर्पण बुद्धि होती है, वे सब देवद्रव्य के साथही संबंध रखते हैं. वैसेही पूजा आरती वगैरह के चढावे में भी जितना द्रव्य बोला जावे उतने द्रव्यमें ऊपर के कारण से स्वाभाविकही भगवान् को अर्पण करने की बुद्धि होती है. इसलिये वो सब द्रव्य देवद्रव्यके साथ पूरा पूरा दृढ संबंध रखता है. 30 मंदिरमें भगवान्के सामने साथिये ऊपर या खाली पाटेके ऊपर जितना द्रव्य चढानेके लिये रख्खाजावे उतना भगवान्के संबंधसे वो देवद्रव्य होता है, वैसेही आरती पूजामें जितना द्रव्य देनेका बोलें उतना द्रव्य भगवान्के साथ संबंध रखता है. इसलिये वो सब देवद्रव्य होता है. 31 अनंत उपकारी वीतराग प्रभूकी भक्तिमें जितना द्रव्य अर्पण करूं उतनाही थोडा है, ऐसी भावनासे ही पूजा, आरती वगेरह के चढावे होते हैं. इसलिये उनका द्रव्य देवव्यके साथ संबंध रखता है. 32 जितने चढावे होते हैं, वे सब प्रसंगानुसार संबंधवाले होते हैं इसलिये जिस प्रसंग से जिसके संबंधमें चढावा किया जावे उसका द्रव्य उस चढावे के साथ संबंध रखनेवाले स्थान के खाते में जाता है. देखिये, किसीने पर्युषणा पर्वके दिनों में कल्पसूत्रको अपने घर रात्रि जागरण करने के लिये लेजानेका चढावा लिया तो वह स्वाभाविक तयाही ज्ञान खाते के साथ संबंध रखता है, इसलिये उसका द्रव्य ज्ञान

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