Book Title: Devdravya Nirnay Part 01 Author(s): Manisagar Publisher: Jinkrupachandrasuri GyanbhandarPage 79
________________ [29] रखना सर्वथा न्याय विरुद्ध है. और " भख्खंतो जिन दृव्वं अणंत संसारीओ भणिओ" इत्यादि, अर्थात्-देव द्रव्यका भक्षण करनेवाला अनन्त संसारी होवे, ऐसा श्राद्धविधि व आत्मप्रबोधादि शास्त्रों में खुलासा कहाहै, देव द्रव्यका भक्षण करे, करावे, या करने वाले को सहायता देवे तो बडा दोष आताहै. देव द्रव्य की वृद्धि करना भगवान् की भक्ति से निर्जरा के लिये मोक्ष का हेतु है, और दुष्कालमें दुःखियों को सहायता देना उपकार बुद्धिसे पुण्य का हेतु है. इस बातका यदि मर्म समझ में आवे, तो. देव द्रव्यका दुष्कालमें उपयोग करवाने की कुतर्क कभी करने में न आवे इस बातका विशेष विचार पाठकगण आपही करसक्ते हैं. 48 ऊपर के लेखका सारांशः-खास विजयधर्मसूरीजी एक जगह लिखते हैं कि मारवाड, मेवाडादि देशोंमें सैकडों जिन मंदिरों में जीर्णोद्धार की पूरी पूरी जरूरत है, उसमें देवद्रव्यकी सब रकम खर्च हो जाये तो भी सब मंदिरोंका पूरा पूरा जीर्णोद्धार नहीं होसके. जब ऐसी अवस्था है तो फिर देवद्रव्य बहुत होगया है अब देवद्रव्य बढाने की जरूरत नहीं है ऐसा लिखकर देवद्रव्यकी आवक को रोकना, जीर्णोद्धारादिक कार्यों में बाधा डालना, भगवान की भक्ति में अन्तराय करना यह कितना बडा भारी अनर्थ है, इसका विचार करके विजयधर्मसूरिजीको अपनी इस भूलको अवश्यही सुधारना उचित है विशेष क्या लिखें. 5 देवद्रव्यकी वृद्धि करनेके लिये चढावे करनेके पाठ शास्त्रों में हैं या नहीं? देवद्रव्यकी वृद्धि करनेके लिये बोली बोलनेके चढावे करनेके पाठ कोई भी शास्त्र में नहीं है, ऐसा विजयधर्मसूरिजीका लिखना प्रत्यक्ष झूठ हैं, क्योंकि देवद्रव्यकी वृद्धि करने के लिये बोली बोलने के ( चढावे करने के ) पाठ बहुत शास्त्रों में प्रत्यक्ष ही देखने में आते हैं देखिये,Page Navigation
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