Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 88
________________ [38] 62 और भी देखिये- जैसे आनंद, कामदेवादि श्रावक 12 व्रतधारी गुरुभक्त थे इसलिये अन्न-वस्त्रादि गुरुमहाराज को वहोराते थे, तो भी सामान्य बात होनेसे उन्होंने अमुक मुनिको, अमुक वस्तुका, अमुक समय दान दिया था, ऐसा नहीं लिखा है. उसका मर्म भेद समझे बिना कोई कहे कि आनन्द-कामदेवादि श्रावकोने गुरुमहाराजको आहारादि वहोराये नहीं, अगर वहोराये होवें तो उसका लेख बतावो, ऐसा कहने वालेको अज्ञानी समझना चाहिये. तैसेही कुमारपाल महाराजा के पहिले के बहुत संघ पतियोंने चढावे करके देवद्रव्यकी वृद्रि अवश्य ही की होगी. परंतु सामान्य बात होनेसे नहीं लिखीगई, उसका मर्म भेद को समझे बिना कोई कहे कि पहिले के संघ पतियोंने चढावा नहीं किया था अगर किया होवे तो उसका लेख बतावो, ऐसा कहने वालेको अज्ञानी समझना चाहिये / देखिये पहिले के संघ पतियोंने अपने संघमें अमुक मुनिमहाराज को आहार वस्त्रादि दान दिया था ऐसा भी नहीं लिखा है, तो क्या पहिले के संघपति अपने संघ के साथमें जो जो आचार्य उपाध्याय व मुनिमहाराज और साध्वी जी होवें उन्हों को आहारादि नहीं वहोराते थे, ऐसा कभी नहीं होसक्ता, किन्तु यथा अवसर अवश्यही आहारादि से भक्ति करते थे, तो भी सामान्य बात होनेसे उन्हों के चरित्रों में मुनि दान का नहीं लिखा गया, तो भी अवश्य ही समझना चाहिये. तैसे ही पहिले के संघ पतियों के चरित्रों में चढावा करने का नहीं लिखा तो भी तीर्थ की भक्ति और देवद्रव्यकी वृद्धि करने के लिये चढावे करने का अवश्य ही समझना चाहिये परंतु सामान्य विशेष बात के भेदको समझे बिना ही निषेध करना योग्य नहीं है. 63 अगर कहाजाय कि पहिले संघपति चक्रवर्ती भरत महाराजाने शत्रंजय और अष्टापद तीर्थ के ऊपर चढावा नहीं किया इसलिये अभी चढावा करना योग्य नहीं है, ऐसा कहना भी सर्वथा बे समझ है, क्योंकि उस समय भरत चक्रवतीने सब जगह नवीन जिनभंदिर बनवाये

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