Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 80
________________ [30] श्रीकुमारपाल प्रबंध देवद्रव्यकी वृद्धि करनेका पाठ नीचे मुजब है. 49 “मालोघट्टनसमये मिलितेषू श्रीनृपादिसंघपतिषु मंत्रीवाग्भट इन्द्रमालामूल्ये लक्षचतुष्कमुवाच। तत्र च राजाऽष्टी लक्षान्, मन्त्री षोडशलक्षी, राजा द्वात्रिंशल्लक्षान, एवं स्पर्द्धया माला मूल्ये क्रियमाणे कश्चित्प्रछन्नदाता सपादकोटिं चकार / ततश्चमत्कृतो नृपः प्रोचे, दीयतांमाला विलोक्यते मुखकमलं पुण्यवतः, इति शृत्वा मधुमती वास्तव्य मन्त्रि हांसाधारु सुतो जगड श्राद्धः सामान्य मात्रवेषाकारः प्रकटीबभूव / तं दृष्ट्वा मन्त्रिणं प्राह-नृपो विस्मयाकुलमनाः मन्त्रिन् ! द्रव्यं सुस्थं कृत्वा दीयातां माला / जगडोऽपि राजवाचान्तः कषायितः सपादकोटि मूल्यं रत्नं दत्त्वाह-श्रीपरमार्हत भूप ! इदं तीर्थं सर्व साधारणं, अत्र च द्रव्य सुस्थमन्तरेण नहि कोऽपि वक्ति / ततस्तद्वचसा चमत्कृतो राजा तं श्राद्धं समालिङ्गय त्वं ममसंघे मुख्य सङ्घाधिपतिरिति सन्मानन्द्य मानं दत्वा मालामर्पितवान् तेनापि तीर्थभूता स्वमाता परिधापिता // लक्ष्मीवंतः परेऽण्यवं, बद्धस्पर्द्धाः शुभश्रियः / स्वयंवरणमालाधन्मालां जगृहुरादरात् // 1 // सर्वस्वेनापिको मालां, न गृह्णीयाजिनाकसि // इह लोकेपि यत्पुण्यै, स्फुरदिन्द्रपदंनृणाम् // 2 // एवं कृतारात्रिकमङ्गलोद्यत्प्रदीपपूजाद्यखिलोपचारः / जिनं नमस्कृत्य स कृत्यवेत्ता, प्रजागुरुः प्राञ्जलिरित्युवाच " // 3 // 50 ऊपरके पाठकासार यहीहै कि कुमारपाल राजाके संघ में शत्रुजय तीर्थ ऊपर श्रीहेमचन्द्रसूरिजी आदि प्रभावक गीतार्थ पूर्वाचार्योंके व सर्व संघकेसमक्ष कुमारपाल वगैरह संघपतियों के इकठे हुए बाद तीर्थनाथ श्रीऋषभदेव स्वामी की भक्ति में देवद्रव्यकी वृद्धि के लिये इन्द्रमाला पहिरने संबंधी बोली बोलनेका चढावा होने लगा, जब पहिले बाग्भट मंत्री चार लाख रुपये बोले, तब राजाने आठ लाख बोले, फिर मंत्रीने 16 लाख बोले, राजा 32 लाख बोले. इस प्रकार से इन्द्रमाला

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