Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 65
________________ भगवान्की भाक्ति, देव द्रव्यकी वृद्धि और आत्माके कल्याण काही मुख्य हेतु है. इसलिये क्लेश निवारण का कहना प्रत्यक्ष झूठ है. 26 अगर कहा जावे कि-चढावा होने से धनवान् सेठिये चढावा लेकर पहिली पूजा आरती कर लेते हैं उससे गरीब आदमियों को पहिली पूजा आरती का लाभ नहीं मिलता, इसलिये यह रिवाज अनुचित है. ऐसा कहना भी योग्य नहीं हैं क्योंकि देखो खास भगवान् के समवसरण में भी व्यवहार दृष्टि से राजा, मंत्री, सेठिये, सेनापति धनवान् लोग इत्यादि आगे बैठकर भगवान् की सेवा भक्ति पहिले करते थे और गरीब लोग पीछे बैठकर भगवान् की सेवा भक्ति पीछेसे करते थे मगर लाभ तो अपनी अपनी भावना के अनुसार सबको ही यथायोग्य मिलता था. इसी तरह धनवान् सेठिये चढावा लेकर पहिले पूजा आरती करें और गरीब लोग शांतिपूर्वक अपनी शुभ भावना से पीछे करें तोभी उस में कोई हरकत नहीं है. गरीब लोगों को तो पुण्यवानोंको चढावा लेकर पहिली पूजा करते देख कर, देवद्रव्य की वृद्धि और उनकी भक्ति देख कर अनुमोदना से विशेष लाभ लेना चाहिये. उस मे नाराज होने की कोई बात नहीं है. पहिली पूजा में और पीछे की पूजा में जियादा कम लाभ नहीं है, किंतु लाभ तो अपनी अपनी भावना के अनुसार है. तोभी चढावेसे पहिली पूजा करनेवालेको देवद्रव्वकी वृद्धिका जो विशेषलाभमिलता है उसकी अनुमोदना करना योग्य है. जिसके बदले नाराज होना यह तो बडी अज्ञानता है, इसमें क्लेशकी कोई बातही नहींहै. 27 पूजा आरती वगैरह के चढावे में धनवान् का या गरीब आदमीका कोई कारणही नहीं है. देखिये-धनवान् , लोभी तथा भगवान् की भक्तिका अंतराय कर्मवाला हो तो कुछ भी चढावा नहीं बोल सकता और गरीब आदमी दातार तथा भगवान् की भक्तिका लाभ लेनेवाला हो तो वो अपनी शक्ति और भावना के अनुसार चढावा बोल सकता है.

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