Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 64
________________ अर्पण करके आज ऐसी भक्ति का लाभ लेने को समर्थ होता. इस प्रकार अपनी आत्माकी निंदा और प्रभु भक्ति करनेवालों की अनुमोदना करने में आत्मा के भावोंकी विशेष वृद्धि होनेसे भगवान्की पूजा आरती किये बिना और चढावेकी बोली बोलकर उतना द्रव्य भगवान्को अर्पण किये बिना भी शुभ भावनासे भव्य जीव अपना आत्म कल्याण कर सकते हैं. उसमें प्रत्यक्ष तया मुख्य कारण भगवान्की पूजा आरती का चढावा ही समझना चाहिये. 24 बहुत शहरोंमें और गांवडोंमें पर्वके दिन सर्व संघ मंदिरमें या उपाश्रयमें व्याख्यान समय इकट्ठा होता है. उस समय भगवान्की पूजा वगैरह का चढावा बोला जाता है, उस में परस्पर हजारों रुपयोंका चढावा बोलने का उत्साह देखकर कभी कभी अन्य धार्मिक लोगभी भगवान्की और भगवान्की भक्ति के लिये हजारोंका चढावा बोलनेवालों की बडी भारी प्रसंशा करते हैं कि देखो इन लोगोंको अपने भगवानपर कितनी बडी भारी ' भक्ति है कि उसमें धनको तो कंकर के समान गिनकर भगवान्की पूजा भक्तिमें इतना द्रव्य अर्पण कर देते हैं इत्यादि जैन शासनकी प्रसंशा करानेका हेतुभूतभी चढावाही है, उसकी प्रसंशा करनेवालोंकोभी सम्यक्त्वकी प्राप्ति होनेरूप महान् लाभकाकारण होताहै. 25 अगर कहा जाय कि पूजा आरतीके समय धनवान् निर्धन ऊपर आक्रमण न करें इसलिये चढावा करनेका रिवाज ठहराया है तो ऐसा कहनाभी सर्वथा अनुचित है. देखिये धनवान सेठिये बैठे हुएभी उन्हींके नौकर या अन्य साधारण आदमी थोडेसे दामों में चढावा लेकर भगवान्की पहिली पूजा आरती खुशीके साथ कर सकते हैं और धनवान् सेठिये पीछेसे पूजा आरती करते हैं. यह बात बहुत बार अपने प्रत्यक्षमें भी देखनमें आती है, इसलिये पूजा आरती के चढावेमें मुख्य हेतु एक एक के ऊपर आक्रमण करनेरूप क्लेश निवारणका नहीं किंतु

Loading...

Page Navigation
1 ... 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96