Book Title: Devdravya Nirnay Part 01 Author(s): Manisagar Publisher: Jinkrupachandrasuri GyanbhandarPage 41
________________ 39 ठहराव का भी भंग किया तब उसपर इन्दौर के निवासियोंने जाहिर रूप में रात्रि को बजार में सहीयें करवाई हैं यह बात तो प्रकटही है जिस पर भी मेरेपर सही करवाने का आरोप रखते हैं, यह भी आपका नवमा मृषा वाद ही है. 10 इन सब बातों में यदि विद्याविजयजी सत्यवादी होवें तो२४ घंटेमें पूरा पूरा खुलासा प्रकट करें. नहीं तो लोकलज्जा छोडकर अपने मषावाद का जाहिर रूप में मिच्छामि दुक्कडं देकर शुद्ध होवें व अपनी आत्माको निर्मल करें. और यदि शास्त्रार्थ करना चाहते हो तो अपने गुरु महाराज की सही लेकर जाहिर में आवें. फिर पीछे से झूठा झूठा छपवा कर अपनी इज्जत रखनेके लिये प्रपंचबाजीसे भोले लोगोंको भरमानेका धंधा न ले बैठे. मैं यह विज्ञापन छपवाना नहीं चाहता था मगर आपने दो हेंडबिल छपवाकर उस में बहुत अनुचित शब्द लिखे तथा झूठी झूठी बातें लिखकर बहुत लोगोंको संशय में गेरे, इस लेये उन्हों की शंका दूर करने मेरेको इतना लिखना पडा है संवत् / 11. ज्येष्ठ वदी 9. मुनि-मणिसागर, इन्दोर. इस विज्ञापन पत्र का कुछभी जवाब दिया नहीं, अपने नो (9) मृषावादों को सत्य साबित कर सके नहीं व उन भूलों का जाहिर रूप में मिच्छामि दुक्कडं देकर अपनी आत्माको निर्मल भी किया नहीं और अपने गुरुमहाराजकी सही लेकर शास्त्रार्थ भी किया नहीं, चुप होकर कल रोज यहांसे विहार करगये. उस पर से उनकी आत्मा में सत्यता, निर्मलता व शास्त्रार्थ करने की कैसी योग्यता है, उस बातका विचार ऊपर के सब लेखसे सर्व संघ आप ही कर लेवेगा. और संघकी विनंती को मान नहीं दिया व अपनी प्रत्यक्ष भूल का भी स्वीकार नहीं किया व ज्येष्ठ वदी 2 के अपने हेंडबिल में झूठीPage Navigation
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