Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 57
________________ 7] बहाने से साधारण कभी नहीं हो सकता. अगर हरीफाई के नाम से स्वप्नादिक के देवद्रव्यको साधारण खातेमें कर लिया जाय तो उसी तरह हरीफाई से मंदिर, उपाश्रय बनाये गये होवें उन्होंको गरीब गृहस्थियोंके रहने के घर बनाने का प्रसंग आने से धर्मनाश करने के महान् दोषकी प्राप्ति होगी. इसलिये ऐसा कभी नहीं हो सकता. और ऐसा कहनेवाला भी शास्त्रों के रहस्य को नहीं जाननेवाला होने से अज्ञानी ठहरता है. उनके लिखने से या कहने से धर्मनाश का हेतुभूत ऐसा अनुचित मार्ग आत्मार्थियों को अंगीकार करना कभी भी सर्वथा योग्य नहीं है. 13 अगर कहा जाय कि स्वप्न उतारने का शास्त्र में तो नहीं लिखा फिर कैसे उतारे जाते हैं ? इस बातका जवाब यह है कि शास्त्र में तो कल्पसूत्र को पर्युषणाके दिन शाम को प्रतिक्रमण किये बाद रात्रि में सर्व साधु काउस्सग ध्यान में खडे खडे सुनते थे और एक वृद्ध गीतार्थ सबको सुनाता था, ऐसा निशीथचूर्णि, पर्युषणाकल्प नियुक्ति वृत्ति वगैरह शास्त्रों में खुलासा लिखा है, मगर श्रावकोंको सुनानेका कहींभी नहीं लिखा. तोभी गीतार्थ पूर्वाचार्योंने धर्मप्रवृत्तिका विशेष लाभ का कारण जानकर पर्युपणा पर्व में व्याख्यान समय सभामें बांचना शुरू किया, उससे ही आज पर्युषणामें इतनी धर्म की प्रवृत्ति अभी देखने में आती है. यह अधिकार कल्पसूत्रकी कल्पलता, कल्पद्रुमकलिका, सुबोधिकादि टीकाओं में प्रसिद्ध ही है. इसी तरह स्वप्न व पालना वगैरहके रिवाज भी भगवान् की भक्ति के लिये और देवव्य की वृद्धि के लिये मंदिरों की सार संभार रक्षा जीर्णोद्धारादिक महान् विशेष लाभ के लिये गीतार्थ पूर्वाचार्यों के समय से चला आता है. धर्मवृद्धिके हेतुभूत गीतार्थ पूर्वाचार्योंकी आचरणाका रिवाज आत्मार्थियोंको मान्य करना ही श्रेयकारी है इसलिये शास्त्रों स्वप्न उतारनेका नहीं कहा' ऐसा कहकर भोले जीवोंको भ्रममें गेरना और धर्मकार्यमें विघ्न करना, सर्वथा अनुचित

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