Book Title: Devdravya Nirnay Part 01
Author(s): Manisagar
Publisher: Jinkrupachandrasuri Gyanbhandar

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Page 40
________________ 38 6 देवद्रव्य संबंधी इन्दोरकी राज्य सभामें मैं शास्त्रार्थ करनेको तयार हूं. ऐसा आपने पोष सुदी 15 के अपने हेंडबिलमें छपवाया है. यह छठा मृषावाद है. मैंने ऐसा लिखा नहीं है. अगर लिखा कहते हैं तो पत्रकी नकल प्रकट करें, व्यर्थ भोले लोगोंको भ्रममें गेरना योग्य नहीं है. 7 आपके ज्येष्ठ वदी २के हेडबिलमें "मणिसागरजीका. एक और उत्पात" यहभी प्रत्यक्ष सातवी मृषा है. मणिसागरने ऐसा कोईभी उत्पात नहीं किया है किंतु विजयधर्म सूरिजीने सर्व जैन समाज में उत्पात खडा किया है और देवद्रव्य को नाश करने का बखेडा फैलाया है, मैं तो उस उत्पात को शांत करने के लिये व देवद्रव्य की रक्षा करने के लिये आप के बुलाने से शास्त्रार्थ के लिये इधर आया हूं, यह सर्वत्र प्रसिद्ध ही है. 8 आपने ज्येष्ठ वदी 2 के अपने हेंडविल में विनंतीपत्रके साथ संघकी कुछभी जोखमदारी नहीं है. ऐसा लिखा सोभी आठवां मृषावाद है सही करनेवाले संघ के अंदर हैं, आपके अनुचित बर्ताव को रोकने का सर्व जैनीमात्र का हक है उस विनंती पत्र में सब सम्मत हैं. अगर इन्दोर के संघ के जो जो आगेवान् या सद्गृहस्थ आप के वैशाख सुदी १०के हेडबिल को अच्छा समझते होवें और ऐसे अवाच्य व 'साधुके नहीं लिखने योग्य शब्द लिखने की उन्होंने आपको सलाह दी होवे और 23-1-22 के रोज वाले हेडविल के इन्दोरके संघ के ठहराव को भंग करनेमें सम्मत हो तो आपने जिन जिनके नाम अपने ज्येष्ठ बदी 2 के हेडबिल में छापे हैं उन्होंके हस्ताक्षर की सही प्रकट करवाइये. नहीं तो आपका लिखना सब झूठ साबित होगा और आयंदाभी आपका लेख सब झूठा समझा जावेगा. 9 मैंने विनंती पत्र में किसी की भी सही करवाई नहीं है. आपने अपने गुरु महाराज का बचन भंग किया और इन्दोरके संघके

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