Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 18
________________ शास्त्रार्थ के समय आप को बखूबी समझा दी जायगी * । आपका विशालविजय. श्रीमान् विजयधर्म सूरिजी, आपकी तर्फ से पत्र मिला. यद्यपि अन्य बातों में आप योग्य हैं, मगर इस विषय संबंधी तो उपदेश की जगह आग्रह पकड लिया है इस लिये आप न्याय मार्ग को व अपनी विद्वत्सा को दोषी बना रहे हैं. १ मेरे चैत्र वदी १० के पत्र के प्रत्येक बातका खुलासा जवाब आप नहीं दे सकते हैं, अगर दे सकते हो तो अब भी दीजिए. २ . सागरजीके समय मध्यस्थ नियत कर प्रतिज्ञा व साक्षी बनाये बाद दोनों मिलाकर अन्य तयारियां के लिये यहां के संघ को सूचना देने का नियम आपने स्वीकार किया था. अब मेरे सामने उसी नियम को भंग कर के आप अन्याय मार्ग पर क्यों जाते हैं ? ३ यहां के संघर्भसे आपके कई भक्त ऐसे भी देखे गये हैं कि वो लोग आपकी इस बातको उचित वहीं समझते हैं, अंगीकार भी नहीं करते हैं, तो भी शास्त्रार्थ में अपने गुरुकी बात हलकी न होने पावे; इसलिये शास्त्रार्थ होना नहीं चाहते हैं. ऐसी दशा में यहां के संघ की आड लेना, यह कितनी कमजोरी है. ४ आपने ही शास्त्रार्थ के लिये इन्दोर शहर पसंद किया है, और मेरेकोभी आपने ही शास्त्रार्थ के लिये इन्दोर बुलवाया है, मगर यहां के संघने मेरेको शास्त्रार्थ के लिये नहीं बुलवाया. इसलिये यहां के संघ को कहने की मेरेको कोई जुरूरत नहीं है, यदि आप अपनी बात * न संघ बीचमें पडे, न शास्त्रार्थ करना पड़े और न इन बातों का खुलासा करने का अवसर आवे, न हमारी पोल खुले. केसी कपट ताकी चतुराई है. माणसागर ।

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