Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 39
________________ ३७ आनेका और शास्त्रार्थ करनेका लिखा है उसकी नकल देवद्रव्यसम्बन्धी शास्त्रार्थ के पत्र व्यवहार के पृष्ठ ८वेंमें छपचुकी है. व उन्होंके हस्ताक्षर का खास पोष्टकार्ड भी मेरेपास मौजूद है. जिसको शक हो वे मेरेपास आकर बांच लेवें. २ उसी पोष्टकार्ड में उन्होंने शास्त्रार्थ के लिये नियम, साक्षी, मध्यस्थ वगैरह बातें दोनों को मिलकर करलेने का साफ खुलासा लिखा था. अब वो बदल गये. यह दूसरा मृषावाद हैं. ३ वैशाख सुदी १० के रोज उन्होंने एक हैंडबिल छपवायां है उसमें साधु धर्मकी मर्यादा के विरुद्ध गलीच, अवाच्य व अनार्य भाषा लिख कर शांसनकी व अपनी हिलना करवाई है, और अपने गुण प्रकट किये हैं. यह बात इन्दौर के लोगों को प्रकटही है. जिसपरभी मणिसागरने गलीच भाषा लिखकर शासन की हिलना करवाई है, ऐसा लिखा यह भी तीसरा प्रत्यक्ष मृषा भाषण है. मैंने आजतक कोई भी वैसी भाषा का या किसी तरह का हैंडबिल इन्दोर में छपवाकर प्रकट यह बात इन्दोरका सर्व संघ अच्छी तरहसे जानता है. किया ही नहीं है. ४ इन्दोरसे ही पोष बदी में भावनगर के जैन पत्र में विद्याविजयजी ने तार समाचार छपवाकर मेरेको शास्त्रार्थ के लिये चेलेंज (जाहिर सूचना) दीथी. अब मैं शास्त्रार्थकेलिये आया तो न्यायानुसार नियम, साक्षी, मध्यस्थ वगैरह व्यवस्था करके शास्त्रार्थ करते नहीं. यह चौथा मृषावाद है. ५ उसी तार समाचार में " मणिसागर हजुसुधी इन्दोर आवेल नथी. अने तेमना पत्रोथी मालूम पडेछे के ते शास्त्रार्थ करे तेम जणातुं नथी, " ऐसा छपवाया है. मैं शास्त्रार्थ करना नहीं चाहता उन पत्रोंकी नकल आजतक बतला सके नहीं, और झूठ छपवानेका मिच्छामि दुक्कडं देतेभी लज्जा करते हैं. यह प्रत्यक्ष ही पांचवी माया मृषा है.

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