Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 72
________________ [२२] संस्था के फंड में रकम भरवाने के लिये एक सेठियेने ५००) रुपये भरे, दूसरा सेठिया १००) रुपये भरने लगा, तब अमुक सेठने ५००) रुपये भरे हैं, आप तो उनसे बडे हैं, नामी हैं, दातार हैं, दानवीर हैं, इस लिये आपको तो उनसे दूने या चौगुने भरने चाहियें, उन से कमती भरना आपको शोभता नहीं. आप अभी कमती भरेंगे, आपकी देखा देखी दूसरे लोगभी कमती कमती भरेंगे तो इस कार्य को बडा भारी धक्का पहुंचेगा, आप विचार तो करिये इस कार्य में बड़ा लाभ है, इस भव में नाम और पर भव में सद्गति इत्यादि बातों से आपही सेठिये लोगोंको देखादेखी, होडाहोडी, हरीफाई सिखलाकर उंचे चढाकर अपना स्वार्थ पूरा करते हैं. परंतु मंदिरमें वीतराग भगवान्की भक्तिकेलिये लोग अपनी शुभ भावनासे पूजा आरती का चढावा बोलते हैं उनको देखा देखी, होडा होडी, हरीफाईके नाम से बुरा बतलाते हैं, उसपरसे भोले लोगोंके भाव उतारते हैं, भगवान् की भक्ति में अंतराय बांधते हैं, देवद्रव्य की आवक में हानि करते हैं, यह कितने बड़े भारी अन्यायकी बात है. - ३९ और भी देखो इस कालमें सामायिक, प्रतिक्रमण, पौषध, देवपूजा, तीर्थयात्रा, साहमिवात्सल्य, व्याख्यान श्रवण,प्रभावना, गुरुभक्ति, उपवास, छठ, अठमादि तपस्या, व्रत, पच्चक्खाण, मंदिर, उपाश्रय, धर्मशालादि बनाने और पाठशाला, विद्यालय, कन्याशाला, लायब्रेरी, गुरुकुलादिक संस्थाओं के फंडमें रकम भरवाने वगैरह बहुत धर्म कार्य देखादेखी से विशेष होते हैं और खास आपही ' अमुक ऐसा करता है तूं क्यों नहीं करता है ' इत्यादि देखादेखी के उपदेश देकर लोगोंसे धर्म कार्य करवाते हैं. उनमें जैसे कार्य करें वैसे शुभपरिणामों से लोग लाभभी उठाते हैं. और पहिलेभी राजा,महाराजा, चक्रवर्ती,सेठ, सेनापति वगेरह महापुरुषों के साथमें हजारों या लाखों लोग उन्होंकी देखादेखी से संयम धर्म अंगीकार करते थे और उससे ही अपना आत्मसाधन कर लेते

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