Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 74
________________ [ २४ ] ४१ ऊपर के लेख का सारांश:- दूसरे प्रकरण की २० से २८ तक ९ कलमों के लेख से तथा तीसरे प्रकरण की २९ से ४१ तक १३ कलमों के लेख से यह बात अच्छी तरहसे साबित होती है कि भगवान् की पूजा आरती वगेरह के चढावे केवल प्रभुभक्तिके लिये, देवद्रव्यकी वृद्धिके लिये, व अपने आत्महितके लिये करने में आते हैं और उनका सब द्रव्य भगवानको अर्पण होता है, वो सब देवद्रव्यके साथ संबंध रखता है. इसलिये चढावे का जितने द्रव्यसे आदेश लेवें उतना द्रव्य उसी समय से ही देवद्रव्य होजाता है. उसके बाद जितना विलंबसे देवे उतनाही व्याजका दोष लगता है, यह बात तो सर्व जैन समाज में प्रसिद्धही है. जिसपरभी ' पूजा आरती के चढावे क्लेश निवारणके लिये हैं और उनका द्रव्य देवद्रव्यके साथ संबंध नहीं रखता है, ' ऐसा लिखकर उस द्रव्यको साधारण खातेमें लेजाने संबंधी विजयधर्मसूरिजी का व उन्होंके शिष्यादि अनुयायियों का कहना, लिखना व उपदेश करना प्रत्यक्षही झूठ है. और भोले जीवों के भगवान्की भक्ति में, आत्म कल्याण में विघ्न डालनेवाला व देवद्रव्यको हानि कारक होने से संसार वृद्धि का हेतुभूत बडेही अनर्थ का करनेवाला है इसलिये वो सब यदि भवभीरू आत्मार्थी होवें तो उन्होंको अपनी भूलका सर्व जैन संघ के समक्ष मिच्छामि दुक्क देकर शुद्ध होना योग्य है, आगे उन्होंकी इच्छाकी बात है. विजयधर्मसूरिजी खास लिखते हैं कि भगवान्को अर्पण किया हुआ देवद्रव्य किसी अन्य जगह नहीं लग सकता तो फिर पूजा आरती वगेरह चढावे में अर्पण किया हुआ देवद्रव्यको साधारण खातेमें लेजानेका फजूल झूठा आग्रह करके देवद्रव्य के विनाशसे संसार परिभ्रमणका भय क्यों भूल गये हैं, इस बातका विशेष विचार पाठक गण आपही करलेंगे.

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