Book Title: Dev Dravya Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Naya Jain Mandir Indore

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Page 76
________________ [२६] ३-४ करोड देवद्रव्य होगा उस अपेक्षा सेभी अभी देवद्रव्य बहुत कम है, जिसको ज्यादे कहके उसकी आवक को धक्का पहुंचाना योग्य नहीं है. ४४ हिन्दुस्थान में सर्व जगह के जिन मंदिर मिलकर अनुमान २-३ लाख पाषाण के जिन बिंब और पंच तीर्थे, चौवीसी, सिद्धचक्र व चरण पादुका तो लाखों की संख्या में मौजूद हैं, उन्हों की पूजा, आरती में कममें कम अनुमान ८-१० लाख का वार्षिक खर्च लगे और पूजा, आरती, स्वप्न, पालना, रथ यात्रा वगैरह के चढावे तथा भंडारादिक की आवक में सब मिलकर अनुमान ३-४ लाख की वार्षिक आवक है, इस हिसाब से भी देवद्रव्य बहुत कम है इसलिये मेवाड, मारवाड, वगैरह देशोंमें बहुत जिन मंदिर अपूज रहते हैं यह बात तो जाहिर ही है, तिसपरभी देवद्रव्यको बहुत बतलाना प्रत्यक्ष झूठ है, अगर इस अल्प आवक को भी बहुत कहकर बंध करदी जावेगी तो आगेको मंदिरोंकी, जिन बिंबोंकी व तीर्थोंकी कैसी व्यवस्था होगी उसका विचार सर्व संघ आपही करसकता है. ४५ अगर कहा जाय कि बम्बई - अमदाबाद वगेरहमें देवद्रव्य बहुत है इसलिये अभी देवद्रव्यकी वृद्धि करने की जरूरत नहीं है. ऐसा कहना भी अनुचितही है, क्योंकि दोचार जगह देवद्रव्य ज्यादे देखकर सर्व जगह देवद्रव्यको ज्यादे कहना यह बडी भूल है. बम्बई, अहमदाबाद के देवद्रव्यसे हिन्दुस्थान भरके सब मंदिरोंका व सब तीर्थों का काम कभी नहीं चलसक्ता देखिये जैसे २-४ साधुओं को विद्वान् देखकर कोई कहेकि अब विद्वान् बहुत होगये हैं, अब विद्या अभ्यास करनेकी, उसके पीछे द्रव्य खर्च करवानेकी व परिश्रम उठाने की कोई जरूरत नहीं, तथा २-४ धन वान् गृहस्थोंको देखकर कोई कहे कि अबतो धन बहुत होगया है अब धन कमाने की किसीको जरूरत नहीं हैं ऐसा कहनेवाले को जैसा निर्विवेकी समझा जाता है, तैसेही २-४ जगह देवद्रव्य को विशेष देखकर सर्व

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